जात न पूछो गुरु की
लेखक - संजय दुबे
आमतौर पर ये माना जाता है कि एक शिक्षक जिंदगी भर शिक्षक रहता है ।अगर हम विद्यालय,महाविद्यालय या किसी प्रशिक्षण संस्था की बात करे तो विषय विशेष के ही शिक्षक विद्यार्थी को छात्र जीवन में मिले है। बहुत कम ऐसे शिक्षक देखे जाते है जिनका ज्ञान क्षेत्र विस्तृत होता है। शैक्षणिक संस्थानों सहित जीतने भी सीखने के क्षेत्र में गुरुजन है उनके ज्ञान की सीमा निर्धारित होती है। आदिकाल में देखे तो मनुष्य की सबसे बड़ी गुरु प्रकृति ही थी जिससे सीखने का क्रम शुरू हुआ। रोटी, कपड़ा और मकान जैसी मूलभूत सुविधा के लिए प्रकृति से ही अनाज, छाल - चमड़ा,गुफा का ज्ञान मिला । वक्त के साथ आवश्यकता सृजित हुई तो आविष्कार ने जन्म लिया।
व्यक्ति सामाजिक होते गया तो सीखने वालो ने ही सिखाना शुरू किया।कहा जाता है कि दुनियां में प्रकृति के बाद मां और बाप प्राकृतिक गुरु बने,जिन्होंने व्यवहारिक शिक्षा दीक्षा दी। कालांतर में परिवार का संगठन समाज के रूप में हुआ तो गुरुकुल जैसी शिक्षण संस्थान ने जन्म लिया।
उस जमाने में कर्म के आधार पर जाति तय होती थी इस कारण जिस व्यक्ति ने जिस कर्म का चयन किया उसकी जाति निर्धारित हो गई। इस सिद्धांत को राजनिति से जुड़े लोगों ने अपने स्वार्थ के लिए "जाति के आधार पर कर्म " सिद्धांत प्रतिपादित कर दिया। आज भी आप निजी क्षेत्र में जाकर देखिए जिनमे योग्यता है वे शीर्ष पर है। उनकी विद्वता मापदंड होती है।
बात गुरु की हो रही है क्योंकि आज शिक्षक दिवस है।देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ सर्व पल्ली राधाकृष्णन जी का जन्मदिवस शिक्षक दिवस के रूप में इसलिए मनाया जाता है क्योंकि वे शिक्षक रहे थे और सबसे कठिन विषय दर्शन शास्त्र में में उनका ज्ञान असाधारण था।
उनके जन्म दिवस के पहले के दौर में भी शिक्षक सम्मानित व्यक्ति की श्रेणी में रहते थे और उनका सम्मान सतत रहा करता था। दिन विशेष की आवश्यकता न पहले थी और न और अब है।शिक्षा और शिक्षक, बदलते दौर में बदल गए है। बदलना भी चाहिए क्योंकि परंपरागत ढंग से परिवार,समाज, गांव,शहर,राज्य,राष्ट्र नही चल पा रहे है तो शिक्षक कैसे परंपरागत रह पाएंगे। पुरातन शिक्षक जंगल में पर्नकुटीर बनाकर व्यवहारिक शिक्षा दिया करते थे।तब आर्ट्स, कामर्स,साइंस विषय नही हुआ करते थे। शिक्षको के विषय विशेषज्ञ होने की विशेषता आधुनिक शिक्षा की देन है। जो बेहतर भी है।इससे परे जीवन में इतने क्षेत्र हो गए है कि उनके गुरुओं की संख्या को अंको में दे पाना कठिन है। इतने ही सम्मान का भी सृजन हो चुका है।नोबल से लेकर न जाने क्या क्या सम्मान शिक्षा जगत के लिए है।
गुरु, आदिकाल से सम्मानित है आगे भी रहेगा, हमारे आपके भी गुरुजन सम्मानित है। शैक्षणिक गुरुओं से परे हर व्यक्ति के जीवन में ऐसे व्यक्ति होते है जिनकी सीख उन्हे बेहतर जिंदगी और सोच देने की क्षमता रखती है, उन सभी को आज विशेष नमन
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