कल्पना के प्रथम पूज्य:गणेश

लेखक- संजय दुबे

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  शिव और पार्वती के पुत्र गणेश को प्रथम पूज्य के रूप में स्वीकार किया गया है। भारतीय संस्कृति में धर्म की जहां भी स्थापना की शुरुवात होती है वहां विघ्न विनाशक या हर्ता का वंदन होता है अभिनंदन होता है।

 इस परंपरा को बाल गंगाधर तिलक ने अंग्रेज़ो के खिलाफ कार्य योजना को क्रियान्वित करने के लिए सार्वजनिक गणेश उत्सव की शुरुवात की। अब ये उद्देश्य नहीं है लेकिन सामाजिक संगठन को बनाए रखने की दृष्टि से गणेश सार्वजनिक रूप से भी स्थापित होते है।घरो के मंदिरों में गणेश दस दिन विराजते है।माना जाता है कि इतने दिनो में गणेश की मूर्ति इतनी आत्मीयता पा जाती हैं कि विसर्जन में आंखे भींग जाती हैं।

 धर्म से परे गणेश ,कल्पनाशीलता के विस्तृत आकार है। लाखो बड़ी मूर्तियां बनती है, हर मूर्ति अपने आप में कल्पनाशीलता की चरम होती है। इतने सारे वस्तुओ का उपयोग किया जाता है कि गिनना मुश्किल है। आकार में विशालता हर साल बढ़ते जा रही है।सौंदर्य का बेमिसाल समन्वय देखा जा सकता है। मुंबई, गणेश उत्सव का सबसे बड़ा केंद्र बन चुका है।बाल गंगाधर तिलक ने पुणे से सार्वजनिक गणेश उत्सव की शुरुवात की थी। महाराष्ट्र और इससे लगे राज्यों में गणेश व्यापक हो रहे है। मुंबई में लाल बाग के गणेश तो आर्थिक संपन्नता के परिचायक बन गए है। 15करोड़ का स्वर्ण मुकुट पहनना वैभव ही तो है। 

  आजकल प्रबंधन का जोर है गणेश को भी ऐसे ही प्रथम पूज्य नही माना गया है।मस्तिष्क अगर सजग है तो आप हर परिस्थिति में किसी भी कार्य के लिए सार्थक योजना बना सकते है।


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