क्या आने वाले समय में बैल,विलुप्त पशु हो जायेगा?

लेखक - संजय दुबे

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 2019को देश में पशु धन की गणना में एक अच्छी और बुरी खबर का खुलासा हुआ। देश में लगभग 14.51 करोड़ गाय है और बैलो की संख्या 4.73करोड़ है। इसका अर्थ ये है कि तीन गाय पीछे एक बैल है। ये अनुपात एक तरीके से चेतावनी है कि बैल प्रजाति दिन ब दिन अनुपयोगी होते जा रही है। आधुनिक संयंत्र और उपकरण के प्रचलन के पहले के जमाने में गाय के बराबर या कहे गाय से भी ज्यादा उपयोगी पशु बैल हुआ करता था।इसका कारण भी था कि गाय केवल दूध देती थी जबकि बैल खेत से जुताई,मिंजाई, मिसाई के बाद बैल गाड़ी में जुत कर परिवहन का साधन हुआ करता था गांव से शहर आने के लिए वाहन के रूप में बैल काम आता था।

वक्त बीतते गया।आधुनिक संयंत्रो के आने से खेत में जुताई के लिए ट्रैक्टर आ गए। मिंजाईं, मिसाई के लिए भी यंत्रों का आविष्कार हो गया। खेत में उपजे उपज को बाजार तक पहुंचाने के लिए अनेक वाहन आ गए। परिवहन के क्षेत्र में ट्रेन, बस, कार,और दो पहियां वाहनों ने बैल को इन क्षेत्रों से बाहर कर दिया। 

अब बैल के हिस्से में केवल और केवल एक मुख्य कार्य शेष बच गया है वह है गर्भाधान करने का। इस कार्य का कोई विकल्प नहीं है अन्यथा चमड़े का धंधा और तस्करी करने वाले बैल समुदाय को वैसे ही खत्म करने में लग जाते जैसे पेड़ो को खत्म करने वालो ने किया है।

  बैल को जन्म देने के बाद, बैल के छोटे रूप बछड़े की अहमियत केवल दूध निकालने से पहले गाय को ये भ्रम होने देने तक रहती है कि बछड़ा दूध पी रहा है।इसके बाद बैल को खिलाने पिलाने का काम भगवान भरोसे छोड़ दिया जाता है। गांव में तो कम से कम घांस जमीन है या चारा मिल भी जाता है शहरी क्षेत्रों में सिवाय आवारा पशु की श्रेणी में रहने के अलावा बैल का कोई काम शेष नहीं रहता। जहां जगह मिली वहां बैठ कर बैल अपने शरीर को विश्राम ही देता है। देश में सड़के फर्राटा हो गई है।फोर लेन सड़को पर वाहनों की गति नियंत्रित गति से ज्यादा होती हैं, रात में बैलों के सड़को पर बैठने के कारण जान माल की हानि होते ही रहती है। छत्तीसगढ़ में पिछले 5साल में 404 जाने पशुओं के सड़क पर बैठने के कारण गई है।129व्यक्ति घायल हुए है। इस बात को गंभीरता से लेने की आवश्यकता है।

 सड़के अच्छी बन गई है।आधुनिक दो पहिया चार पहिया वाहन के आने से आवागमन सुविधाजनक हो गया है।माल ढोने के लिए पेट्रोलियम द्रव्य से चलने वाली वाहन है ऐसे में बैल को फांद कर, गाड़ी में धीमी गति से पहुंचने का कष्ट कोई नहीं झेलना चाहता लेकिन एक पशु दिन ब दिन अनुपयोगी हो रहा है और व्यक्ति के लिए भारी पड़ रहा है। थोड़ा सा शुक्र भगवान शंकर का है जो उन्होंने बैल को अपना वाहन बनाकर रख लिया है,इसके चलते एक त्यौहार -पोला,मन रहा है,


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