किसानों के समर्थन में माकपा, ट्रेड यूनियन व सामाजिक संगठनों के किसान विरोधी कानून वापस लेने की मांग

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किसान विरोधी तीन कृषि कानूनों व बिजली विधेयक 2020 को वापस लेने की मांग को लेकर देश के 500 से अधिक किसान संगठनों के संयुक्त संघर्ष समन्वय समिति द्वारा 23 दिसम्बर को किसान दिवस के मौके पर देश के आम जनता से एक समय का भोजन त्याग कर उपवास करने के आव्हान का समर्थन करते हुए देश के अन्नदाता के साथ एकजुटता के लिए 23 दिसम्बर को माकपा, ट्रेड यूनियन संगठन, छात्र, युवा, महिला, पत्रकार, रंगकर्म, लेखक, साहित्यकार, सामाजिक कार्यकर्ता , दलित शोषण मुक्ति मंच व विभिन्न जनसंगठनों के कार्यकर्ता सुबह 11 बजे से आंबेडकर प्रतिमा के समक्ष सामूहिक उपवास पर रहे और एक वक्त के भोजन का परित्याग किया। माकपा के राज्य सचिव मण्डल सदस्य व सीटू के राज्य सचिव धर्मराज महापात्र, जिला सचिव प्रदीप गभ्ने, सीटू नेता नवीन गुप्ता, एस सी भट्टाचार्य, मारुति डोंगरे,विभाष पैतुंदी, हेमंत परमार, अभिजीत चक्रवर्ती, समीर मोघे, एस एफ आई नेता डाक्टर राजेश अवस्थी, जनवादी नौजवान सभा नेता मनोज देवांगन, शाहिद रजा, मोहम्मद रब्बानी, अकील अहमद, शेख अहमद, इप्टा के सचिव अरुण काथोटे, दलित शोषण मुक्ति मंच के शेखर नाग, बीमा कर्मचारी नेता बी के ठाकुर, अतुल देशमुख, पवन सक्सेना आदि साथी उपवास पर रहे । सामूहिक उपवास कार्यक्रम में बड़ी संख्या में ट्रेड यनियन कार्यकर्ता भी शामिल रहे । जिनमे महिलाएं भी शामिल रही । उपवास के समापन पर हुई सभा को कामरेड धर्मराज महापात्र, अलेक्जेंडर तिर्की, सुरेन्द्र शर्मा, वी एस बघेल, एस सी भट्टाचार्य, प्रदीप गाभने ने संबोधित करते हुए केंद्र सरकार के रुख की कड़ी आलोचना की । उन्होंने कहा कि आजाद भारत के इतिहास में पहली बार अपनी खेती बचाने के लिए पिछले 28 दिनों से देश की राजधानी की सीमाओं पर तमाम प्रतिकूल परिस्थिति के बाद भी अपनी आवाज लेकर संघर्ष के मैदान में डटे देश के किसानों की आवाज सुनने की बजाय कार्पोरेट परस्त मोदी सरकार देश के कार्पोरेट के आगे नतमस्तक होकर उसे अनसुना कर रही है । सरकार द्वारा कानून में संशोधन की बात को खारिज करते हुए कहा कि जब पूरा कानून का मकसद ही खेती को कार्पोरेट के हवाले करना है तो। उसमे संशोधन की बात बेमानी है । वक्ताओं ने कहा कि ये वैसे ही है की जब पूरी दाल ही काली है तो उसने थोड़ी नमक, हल्दी मिलाने से वह ठीक नहीं हो सकती है । उन्होंने साकार के यह कानून किसान को आज़ाद करने बनाने के दावे को हास्यास्पद बताते हुए कहा कि जिसे आज़ाद करने की वह बात कर रही है वहीं किसान यह आज़ादी नहीं मांग रहा है तो उस पर यह तथाकथित आज़ादी थोपी क्यों जा रही है । देश के हर हिस्से से उठती इस आवाज को अनसुना कर सरकार किसानो की बलि चढ़ा रही है । अब तक 40 लोगों की शहादत के बाद भी सरकार की भूख नहीं मिट रही है यह शर्मनाक है । उसे किसी सूरत में मंजूर नहीं किया जा सकता है । इसलिए देश के हर हिस्से के नागरिक इस आन्दोलन के साथ एकजुट हुए है । रायपुर के अलावा छत्तीसगढ़ के अन्य हिस्से में भी बड़े पैमाने पर किसानों के साथ एकता व्यक्त करने लोग उपवास किए । अब इस आन्दोलन के अगले चरण में सब संगठन कार्पोरेट विरोधी दिवस मनाएंगे और रिलायंस के जिओ सिम, माल, पेट्रोल पंप, अदानी के फार्चून खाने के तेल, आटा आदि का बहिष्कार करने भी जागरण अभियान चलाएंगे । छत्तीसगढ़ के अन्य हिस्सों में भी किसानो के साथ आम नागरिक के अन्य हिस्से ने इस उपवास में भारी संख्या में भागीदारी की ।
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