किसान का मान राजनीति से परे हो।
लेखक: संजय दुबे
धान का कटोरा कहे जानेवाले राज्य के श्रम से निकले धान के मामले में दिल्ली सरकार को संवेदनशील होने की सख्त जरूरत है। छतीसगढ़ से किसानों की उपज का 40 लाख मेट्रिक टन चाँवल दिल्ली की सरकार को लेने का निर्णय उनका अपना निर्णय है ।राज्य की सरकार तो महज प्रतिनिधि बन कर अपना दायित्व निभा रही है। 2500 रु में किसानों से प्रति क्विंटल धान खरीदने के निर्णय ने भूपेश बघेल को मुख्यमंत्री बनाने में अहम भूमिका अदा की है। वे प्रयासरत है। एक माह पूरे होने को जा रहे है इसके बावजूद भारत सरकार से उनके हिस्से का ही धान मिलिंग के लिए अनुमति न मिलना किसानों के श्रम का अवमूल्यन ही है।
ये देश एकल नागरिकता का देश है इस कारण किसान को किसी राज्य विशेष का नागरिक मानना ,दलीय राजनीति से किसान को परे माना जाना चाहिए। पूरे राजनीतिज्ञ जानते है कि समर्थन मूल्य केंद्र की सरकार घोषित भर करती है उस मूल्य को किसानों को दिलाना राज्य सरकार की जिम्मेदारी है। छत्तीसगढ़ में किसी भी दल की सरकारे रही हो उन्होंने समभाव किसानों के मान रखा है। बोनस दिया है,सम्मान निधि दिया है। ये साल कठनाइयों का साल रहा है। कोरोना ने कमर तोड़ दिया है।मजदूर है लेकिन वे सम्वेत नही हो पा रहे है। सामूहिक श्रम बाधित है। दूरी की अनिवार्यता ने बड़े कामो को आधा कर दिया है। पूरा देश बारदाने के संकट से गुजर रहा है। धान खरीदी केंद्रों में जगह सीमित है।किसानों से दो महीने में धान खरीदी अनिवार्यता है। छत्तीसगढ़ की सरकार अपने हिस्से के साथ साथ देश के हिस्से के जरूरतमंद लोगों के लिए अपनी जिम्मेदारी निभा रहा है उसके बावजूद इसके राजनीति के पाले में किसान का धान फंसा हुआ है। केंद्र सरकार को तो 25 नवम्बर 2020 से ही चाँवल लेने की योजना को मूर्त रूप दे देना था लेकिन दिल्ली को घेरे किसानों को सबक सिखाने की हठधर्मिता ,दलीय राजनेतिक भेदभाव के चलते राष्ट्रीय श्रम अपमानित हो रहा है,राष्ट्रीय उपज का अवमूल्यन हो रहा है। भारत सरकार के प्रतिनिधि छत्तीसगढ़ में भी भारतीय खाद्य निगम (FCI) कार्यरत है। उनके अधिकारियों की जिम्मेदारी बनती है कि वे देश के एकल नागरिक होने का दायित्व निभाते हुए पहल करे। याद रखे किसान को परेशान करने का मतलब अन्नपूर्णा का अपमान है।
राज्य के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के कल के उद्गार में वेदना है।वे स्वयं किसान है किसानों की पीड़ा को समझ कर अगर वे भारत सरकार से विनम्रतापूर्वक आग्रह कर रहे है तो इसे राजनीति के चश्मे से न देखा जाकर केंद्र सरकार को बड़े भाई की भूमिका निभाना चाहिए।
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