क्या बंगाल में वामपंथ और कांग्रेस की कोई प्रासंगिकता बची है?

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बंगाल में 2011 और 2016 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन लगभग एक सा रहा। इस बार भी पार्टी उम्मीद कर रही है कि वो अपनी सीटों को बरकरार रखने में कामयाब हो। लेकिन सीपीएम के लिए चिंता का विषय यह है कि जहाँ उसने 2011 में 40 सीटें जीतीं, वहीं 2016 में वो मात्र 26 सीट ही जीत पाई।

कांग्रेस और वाम दल चुनाव साथ लड़ रहे हैं, लेकिन दोनों ही पार्टियाँ ख़ुद को सिमटा हुआ पा रही हैं। तो यह सवाल लाज़मी है कि क्या इन दोनों विचारधाराओं की पश्चिम बंगाल चुनाव में कोई प्रासंगिकता बची है? 

करात कहती हैं कि लेफ़्ट की प्रासंगिकता वैकल्पिक नीतियों की है। वो कहती हैं, हमारी प्रासंगिकता इस बात की है कि जब आठ करोड़ टन अनाज सड़ रहा है गोदामों में, हमारी प्राथमिकता यह है हम उस अनाज को जनता तक पहुँचाएँ, जो हम कर रहे हैं केरल में, जब नौजवान बेकार है,तो प्राइवेट सेक्टर पर निर्भर ना होकर सरकार को स्वयं पहला इनवेस्टमेंट करके रोज़गार के अवसर को बढ़ाना चाहिए। हम 2.5 लाख करोड़ रुपए टैक्स की चोरी लोगों की जेब से करना और 11 लाख करोड़ रुपए के बड़े औद्योगिक घरानों को छूट देने जैसे काम नहीं करते। 

धर्म के नाम पर हो रही राजनीति की भी करात आलोचना करती हैं. उनका कहना है कि वाम दल धर्म को एक राजनीतिक हथियार के रूप में नहीं देखते.


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