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राजनीतिक दलों के लिए क्या मुद्दे हैं इस चुनाव में?
बंगाल के चुनावी प्रचार के घमासान को बारीकी से देखें,तो लगेगा कि धर्म और राष्ट्रवाद के नाम पर वोट माँगे जा रहे हैं। लेकिन आम जनता से जुड़े हुए मुद्दों का क्या? क्या उस पर कोई बात हो रही है?
टीएमसी के सौगात राय कहते हैं, हमारे मुख्यमंत्री ने जो काम किया है, इन चुनावों में उसी की परख होगी। उन्होंने जो मुफ़्त स्वास्थ्य सुविधाओं का इंतज़ाम किया है, मुफ़्त राशन का इंतज़ाम किया है, लड़कियों को साइकिल दी गई, इन सब बातों का क्या असर रहा है, उसी की परख है ये चुनाव।
दूसरी ओर वाम नेता वृंदा करात कहती हैं कि अगर आज हिंदुस्तान हर संवैधानिक मूल्यों पर इतनी बड़ी चोट के बाद भी बचा है, तो वो इसलिए कि हमारे देश की जनता समझती है कि हमारा देश क्या है। उन लोगों को हमें हराना है। जो इन तमाम मूल्यों को सत्ता का इस्तेमाल करके चुनौती दे रहे हैं।
लेकिन कांग्रेस के राज्यसभा सांसद पी भट्टाचार्य कहते हैं, हम किसी व्यक्तिगत एजेंडा के तहत नहीं लड़ रहे हैं,जो बीजेपी और तृणमूल कर रहे हैं। यह दोनों दल धर्म को लेकर लड़ रहे हैं। ममता जी नामांकन भरने के बाद 17 मंदिरों में गईं,वो अपने क्षेत्र के लोगों को यह दिखना चाहती थीं कि मैं बीजेपी वालों से ज़्यादा बड़ी हिंदू हूँ।
लेकिन तृणमूल को छोड़कर हाल ही में बीजेपी में आए दिनेश त्रिवेदी का मानना है कि बंगाल की जनता टीएमसी से नाराज़ है, क्योंकि उस पार्टी के लोग ज़हरीले भाषण देते हैं, जिनमें प्रधानमंत्री को गाली दी जाती है। त्रिवेदी कहते हैं कि बंगाल में लोगों ने बदलाव के लिए मन बना लिया है।
वो कहते हैं कि आज अल्पसंख्यक नाराज़ हैं कि आपने मेरा इस्तेमाल किया। ना तो हमको नौकरी दी,ना हमको हिस्सेदारी दी निर्णय लेने में, ना तो हमें इज़्ज़त दी। हमारी याद आपको सिर्फ़ चुनाव में आती है।
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