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राम भक्त हनुमान जी
लेखक : संजय दुबे
मुझे याद आता है बचपन के वे दिन जब हम लोग शहडोल में रहा करते थे। गर्मी और दीवाली की छुट्टी रायपुर में गुजरती। हमारे गए में पूजा पाठ का प्रचलन नहीं था लेकिन रायपुर आते तो ब्राह्मणपारा स्थित घर दोनों ओर हनुमान का मंदिर हुआ करता था(अभी भी है)।तब से हनुमान जी से परिचय हुआ था। घर मे बड़े चाचा ईश्वर भक्त थे, उनका एक घरेलू मंदिर था जिसमे शिव आराधना हुआ करती थी। यही पर एक रामायण रखी रहती थी। इस रामायण में कुछ चित्र शायद 5-6 रहे होंगे। उसमें एक चित्र था जिसमे सुरसा राक्षसनी के मुँह से हनुमान जी निकलते हुए द्रष्टिगोचर होते थे। पता चला था कि सीता के तलाश मे निकले हनुमान जी की परीक्षा लेने के लिए सुरसा अवरोध बनी थी। मोहल्ले के मंदिर के प्रति आस्था से ज्यादा मिलने वाले प्रसाद की चिंता रहती थी। आभार हनुमान जी का उन्होंने अपने मंदिर से कभी भी खाली हाथ वापस नही भेजा,प्रसाद मिलते रहा। कालेज के जमाने मे अनेक हनुमान भक्तों से संगत हुई जो सालभर पढ़ाई छोड़ सारे गतिविधियों में व्यस्त रहते थे लेकिन परीक्षा का मौसम आते ही मंगल शनि के दिन शाम की आरती में ये बंदे आंख बंद कर किसी वर की पूर्ति के लिए खड़े दिखते। इन्हें कभी भी हनुमान जी से शिकायत नही रही अगर परीक्षा में सप्लीमेंट्री आ गईं तो। बात आई गयी हो गयी। हनुमान जी के बारे में बहुत सी जानकारी एकत्रित होते रही। अंजनि और पवन के पुत्र से लेकर, सुग्रीव के मित्र से लेकर राम भक्त होने से सीता की खोज, लक्ष्मण के लिए संजीवनी की व्यवस्था के बाद, महाभारत काल मे भीम की परीक्षा से लेकर अर्जुन के रथ के पताका में अवलंबन तक जानने का कार्य पूर्ण हो चुका था। हनुमान चालीसा के अलावा सुंदर कांड में हनुमान जी का पाठन आज भी करोड़ो भारतीयों को विश्वास देता है कि संकट कटे मिटे सब पीरा, जो सुमिरत हनुमत बलबीरा। अगर मैं गलत नही हूं तो रामायण का सुंदर कांड और हनुमान चालीसा हर उस भारतीय ने पढ़ा है जिसपर संकट आया हो। एक मिथक है या सच्चाई या प्रमाण जिसमे सदाकाल तक जीवित रहने और कल्कि के आगमन पर उसके स्वागत के लिए हनुमान जी साक्षात है।
मेरे विचार में, हनुमान जी जो एक भगवान जिस रूप में वे पूज्य है ,उससे ऊपर है। हमारे आसपास के वातावरण में देखे तो पिछले तीन दशकों में संयुक्त परिवार टूटा है यूं मान ले कि दशरथ के चार संतानों में जो एकता, भ्रातत्व थी,परस्पर सद्भाव था,सम्मान था,आज्ञाकारिता थी वह खंडित हो गयी है। बहुतायत से एकल परिवार खड़े हो गए है। हम हमारा से मैं मेरा में माइक्रो परिवार सिमट गया है। अड़ोसी पड़ोसी तो रिश्ते की दूसरी सीढ़ी है पहली सीढ़ी पर रिश्तेदार भी अर्थ आधारित रिश्ते के पर्याय हो गए है। ऐसे राम जिन्होंने आदर्श की स्थापना का कार्य आरंभ किया तो उनके संकटमोचन हनुमान थे वे भी आज इस समाज को देखते होंगे तो उन्हें कलयुगी राम से लेकर शत्रुघ्न और सीता पर भी नाराजगी होती होगी। वे आज के दशरथ और कौशल्या के भेदभाव पर भी अचंभित होते होंगे। वे उस राम के भक्त या सहयोगी थे जो मर्यादा में पुरुषोंत्तम थे जैसा तुलसीदास ने रामचरितमानस में व्याख्या की है।
देश के स्वार्थी लोगो ने हनुमान जी का दुरुपयोग करने में कोई कसर नही छोड़ी। आज देश मे जितने भी जगह अतिक्रमण हुए है उनमें सर्वाधिक रूप से प्रभावित हनुमान जी ही है। सड़क का रास्ता बदलवाना हो या अतिक्रमण के घर को बचाना हो हनुमान जी है ना। ऐसी आस्था से ईश्वरीय रूप कभी भी कम नही होता लेकिन जो लोग सुनियोजित ढंग से ऐसे सच्चे ईश्वर भक्त का दुरुपयोग करते है उनके मन का चोर जानता है कि वे पुण्य का तो काम नही कर रहे है।
आज एक सच्चे सखा,सच्चे मित्र,सच्चे सहयोगी,सहित सर्वश्रेष्ठ सेवक की जयंती है। वे इस संसार मे सेवा,सहयोग की भावना को हममें भरे ताकि हम भी मानव सेवा कर ईश्वर सेवा का प्रतिफल पा सके क्योकि बहुत खराब दौर से हर किसी का जीवन बीत रहा है।
अंत यही की कुमति निवार सुमति के संगी, अपना बल दिखाओ।
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