माँ

लेखक : संजय दुबे

feature-top

दुनियां का हर व्यक्ति, पशु,पक्षी को ये सौभाग्य मिला हुआ है कि उसको जन्म देने वाली कोई न कोई माँ है। व्यक्ति को ये भी सौभाग्य मिला है कि वह इस संबंध को कोई न कोई नाम देता है। वह माँ, अम्मा, अम्मी,मम्मी, मम्मा, आई, मॉम, के अलावा अनेक नामो से संबोधित होती है। कई लोग दीगर रिश्ते के नाम से भी संबोधित करते है पर हर नाम के पीछे एक पवित्र रिश्ते की बुनियाद होती है जिसमे माँ बेटा बेटी के साथ तबसे जुड़ती है जब से ये रिश्ता माँ के कोख में आकार लेता/लेती है। बच्चे तो सामान्यतः 9 महीने में जन्म लेते है लेकिन माँ को अहसास होने लगता है कि वह दुनिया के सबसे नायाब रिश्ते को जन्म देने वाली है,माँ बनने वाली है।

 जिस दिन बच्चा जन्म लेता है, दुनियां उससे रिश्ता जोड़ लेती है लेकिन जुड़े रिश्ते की नाल अलग होते ही जो रुदन पहली बार बच्चे की होती है उसमें माँ शब्द ही अनुगुंजित होता है। ये रुदन असीम संतोष देता है उस जननी को जो माँ होती है। प्रजनन की प्रक्रिया का दर्द और जातक के जन्म का सुख एक माँ ही एक समय मे पाती है। यही से आत्मा का आत्मा का संबंध शुरू होता है जो अनंत काल तक ऐसे ही स्मृत किया जाता है जैसे कौशल्या -राम, देवकी -कृष्ण का, एक अन्य ऐसा ही रिश्ता यशोदा -कृष्ण का भी है,। माँ, अभी तो एक दो संतान तक सीमित हो जा रही है,अर्थव्यवस्था और पालन पोषण को लेकर ,लेकिन गुजरे जमाने मे माँ , के कम से कम चार पांच बच्चे होना सामान्य हुआ करते थे, बिना किसी शिकवा शिकायत के माँ का जीवन समभाव स्नेह बांटते बीत जाता है। खुद भूखी रह जाया करती थी लेकिन अपने बच्चों के पेट खाली नही रहने देती थी।

परिवार में माँ, केंद्र की भूमिका में होती है सब के सब इर्दगिर्द होते है उसके। सबकी जरूरतों को जितना भी सम्भव हो सके पूरी करती माँ, संवेदनाओं की हिस्सेदार माँ, सुख की कम दुख की बड़ी साथी, कुछ भी सुनने को तैयार माँ, बेटी की सहेली और बेटे की सखा माँ, कुल मिलाकर भावनाओ की समुंदर माँ,

 आज आप सभी गर्व करिये अपनी माँ पर,जिसने आपको को समेट कर बड़ा किया, सभी माँ जिनके बच्चे छोटे है वे भी इंतज़ार करे इस कोरोनकाल के गुजरने का जिसके बाद आपके बेटा बेटी आड़े तिरछे आकृति में लिखे ,तुम दुनियां की सबसे अच्छी माँ, अम्मा,अम्मी, मम्मी, मम्मा, मॉम,आई हो।


feature-top