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अंदाज़ है उसमें गीतों का आवाज़ है उनकी गजल जैसी
लेखक : संजय दुबे
20 साल की उम्र रही होगी मेरी जब पंकज उधास की पहले गजल संग्रह की कैसेट बाजार में आई थी। मखमली आवाज़ के साथ उनका आगाज़ हुआ था।। उनसे पहले देश मे प्राइवेट गजल गानेवालों में जगजीत सिंह और चित्रा सिंह ही थे। अनूप जलोटा भी आरंभिक दौर में कुछ ग़ज़ल गाये लेकिन जल्दी ही वे भजन सम्राट बन गए। पंकज का काफिला बढ़ता चला गया। वे बड़ी संजीदगी के साथ गजल दर गजल बढ़ते गए और उन चुनिंदा लोगो के गजल को आवाज़ दी जो बड़े सरल शब्दों में बातो को गीत गजल के रूप में आकार देते थे। पंकज ने गजल के मुद्दों में आशिकी औऱ मयखाने को बराबर रोशन किया। एक तरफ रात घटाऐ खुश्बू गाया तो दुसरी तरफ ए गम ए ज़िंदगी कुछ तो दे मशवरा गाया। सावन के सुहाने मौसम में एक नार मिली बादल जैसे गाया तो हुई महंगी बहुत ही शराब है कि थोड़ी थोड़ी पिया करो गाया। मयखाने की रात में पंकज उधास की गजलों ने दशक तक अपना वजूद बनाये रखा। शराब चीज़ ही ऐसी है, ला पिला दे शाकिया पैमाने पैमाने के बाद, सब को मालूम है मैं शराबी नही फिर भी कोई पिलाये तो मैं क्या करूँ, कभी मयखाने तक जाते है और कम भी पीते है, उसको गले लगाना शाकी, न समझो के हम पी गये पीते पीते, जैसे गजलों में उनकी रेशमी आवाज़ ने गजब का कहर ढाया। लगता कि खुद पंकज की आवाज़ का नशा ही सर चढ़ कर बोल रहा हो। पंकज ने आशिकी को भी खूब संवारा। औऱ आहिस्ता कीजिये बाते, धड़कने कोई सुन रहा होगा, घुंघरू टूट गए, चांदी जैसा रंग है तेरा सोने जैसे बाल,सावन के सुहाने मौसम में , मोहब्बत ना समझ है समझाना जरूरी है, जैसे गजलों में पंकज ने मिजाज़ ए आशिक को सबके सामने रख दिया। पंकज की आवाज़ फिल्मो में कम आयी लेकिन चिट्ठी आयी है,न कजरे की धार, जिये तो जिये कैसे बिन आपके जैसे गीतों ने पंकज की आवाज़ को व्यापक बना दिया। चेहरे से वे हमेशा एक अदब के साथ महफ़िल के रौनक बढ़ाने वाले ही दिखते थे उस पर इतनी शानदार आवाज़ कि सुने तो लगता कि बस पंकज गाते जाए और सामने बैठकर बस सुनते जाए।
आज जनाब पंकज 70 साल के हो गए । 41 साल तक एक आवाज़ आज भी कानो में आशिकी घोलती है,आंखों को नशेमन बनाती है और सालो पहले उनके दो गीत 1 बेसन की सौंधी रोटी पर खट्टी चटनी जैसी माँ और 2 सुख दुख था सब अपना न बेगाना एक वो भी था जमाना एक ये भी है जमाना को सुन ले तो पंकज रुलाने वाले भी शख्सियत रहे है।,सचमुचअंदाज़ है उनका गीतों से आवाज़ है उनकी ग़ज़ल जैसी
धन्यवाद पंकज भाई, आपकी आवाज की कशिश बरकरार रहे।
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