तेनज़िंग नॉर्क़े

लेखक - संजय दुबे

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आमतौर पर सारी दुनियां में ये माना जाता है कि एवरेस्ट पर पहला कदम रखनेवाले व्यक्ति एडमंड हिलेरी थे। इसका कारण भी है कि वे एवरेस्ट विजय अभियान के नेतृत्वकर्ता थे। एडमंड हिलेरी के साथ भारत के सबसे प्रतिभावान शेरपा भी साथ गए थे। एवरेस्ट पर जीत के तेनज़िंग उतने ही हक़दार है जितने हिलेरी। कहा तो ये भी जाता है कि हिलेरी से पहले तेनज़िंग पहुँचे थे क्योकि हिलेरी को सहयोग देने के लिए हाथ तेनज़िंग का था। बात आई गयी हो गई क्योकि एवरेस्ट पर जीत के शुरुवात के वर्ष 1951 के बाद सालो गुजर गए है। जब हिलेरी और तेनज़िंग ने एवरेस्ट पर विजय पाई थी तो संसाधन अत्यंत कम थे। ऐसा नही था कि तेनज़िंग ने 1951 के पहले प्रयास नहीं किया था हिमालय के ऊंचे चोटियों को छूने की 1935 से वे अनेक पर्वतारोही दलों के सदस्य रहे थे, सफलता मिली तो हिलेरी के साथ। 29 मई1951 को सुबह 11.30 बजे 29000 फ़ीट के बेस केम्प से लगभग 40 मीटर की ऊंचाई पर एवरेस्ट की चोटी दो पर्वतारोहियों का इंतज़ार कर रही थी। अंततः एवरेस्ट पर मानव ने पैर रख कर अपने इरादे का सर्वोच्च शिखर को भी आयाम दिया। अब तो बिना ऑक्सीजन के हज़ारो पर्वतारोही एवरेस्ट को छू रहे है लेकिन पहले का नाम सभी को याद होता है।

 जब कभी आप दार्जिलिंग जाए तो केवल मेरे सपनों की रानी गीत को याद न करे बल्कि तेनज़िंग माउन्टेयरिंग इंस्टीट्यूट भी जरूर जाए ,।यहां तेनज़िंग नोर्गे के वे सब संसाधन रखे है जो उन्होंने एवरेस्ट विजय के समय उपयोग किये थे। इस इंस्टिट्यूट में आप हिमालय के किसी भी कठिन ऊँचाई को साहसिक अभियान का हिस्सा बना कर आनंद ले सकते है।


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