मोदी सरकार के 7 साल में अर्थव्यवस्था का हाल
नरेंद्र मोदी ने अधिक नौकरी, विकास और लाल फ़ीताशाही समाप्त करने का वादा करके भारत का सबसे बड़ा चुनाव जीता था और सत्ता संभाली. 2014 और फिर 2019 में उनकी पूर्ण बहुमत की सरकार ने बड़े सुधारों को लेकर उम्मीदें बढ़ा दी थीं।
लेकिन उनके सात सालों के प्रधानमंत्री कार्यकाल के दौरान आर्थिक आँकड़ें बेहद फीके रहे हैं. महामारी ने जिसे और ख़राब कर दिया और अर्थव्यवस्था का उम्मीद से भी ख़राब प्रदर्शन जारी है।आइए समझते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल में एशिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था ने कैसा प्रदर्शन किया।
सुस्त विकास प्रधानमंत्री मोदी ने वादा किया था कि वो 2025 तक भारत की जीडीपी को 5 ट्रिलियन (5 लाख करोड़) डॉलर की बना देंगे।उनका सपना अब पाइपलाइन में अटका नज़र आ रहा है क्योंकि मुद्रास्फीति के बाद देश की अर्थव्यवस्था 3 लाख करोड़ डॉलर ही पहुँच पाएगी।
चरम पर बेरोज़गारी
सेंटर फ़ॉर मॉनिटरिंग द इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के सीईओ महेश व्यास कहते हैं, "2011-12 से भारत की सबसे बड़ी चुनौती निवेश में मंदी रही थी।
"लेकिन सत्ता बदलने के बाद 2016 से हमने कई आर्थिक झटके झेले हैं।
उन्होंने कहा कि नोटबंदी, जीएसटी और रुक-रुककर लगाए गए लॉकडाउन ने रोज़गार को कम कर दिया।
भारत निर्यात भी काफ़ी नहीं कर पा रहा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब 'मेक इन इंडिया' पहल की शुरुआत की थी, तो यह माना जा रहा था कि लाल फ़ीताशाही को समाप्त करके और निर्यात केंद्रों से निवेश आकर्षित करके भारत वैश्विक उत्पादन का पावरहाउस बन जाएगा।
लक्ष्य था कि मैन्युफ़ैक्चरिंग को जीडीपी का 25% हिस्सा बनाया जाएगा। लेकिन सात सालों में इसका शेयर 15% पर अटक गया है। सेंटर फ़ॉर इकोनॉमिक डेटा एंड एनालिसिस के अनुसार, इस सेक्टर की सबसे बुरी हालत हुई है और मैन्युफ़ैक्चरिंग की नौकरियाँ बीते पाँच सालों में आधी हो चुकी हैं।
इंफ़्रास्ट्रक्चर बिल्डिंग एक मुश्किल क्षेत्र
इंफ़्रास्ट्रक्चर फ़र्म फ़ीडबैक इन्फ़्रा के सह-संस्थापक विनायक चटर्जी का कहना है कि मोदी सरकार पिछली सरकार की तुलना में अधिक तेज़ी से हाइवे बना रही है। पिछली सरकार 8-11 किलोमीटर प्रतिदिन हाइवे बना रही थी,जबकि मोदी सरकार 36 किलोमीटर हाइवे बना रही है।
नवीकरणीय ऊर्जा की तरक्की की बात करें, तो सौर और पवन ऊर्जा में भारत की क्षमता बीते पाँच सालों में दोगुनी हुई है। इस समय यह 100 गीगावॉट है,जिसकी 2023 तक 175 गीगावॉट की क्षमता होने की संभावना है।
अर्थशास्त्रियों ने प्रधानमंत्री मोदी की अधिकतर लोकलुभावन योजनाओं को स्वीकार किया है। इन योजनाओं में खुले में शौच से मुक्ति के लिए शौचालय बनाना, घरों के लिए क़र्ज़ देना, सब्सिडी पर कुकिंग गैस और ग़रीबों को घरों तक पाइप के ज़रिए पानी पहुँचाना शामिल है।
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