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सऊदी अरब और रूस ओपेक प्लस देशों की बैठक में भारत की बात सुनेंगे?
गुरुवार को प्रस्तावित ओपेक प्लस देशों की बैठक में उम्मीद की जा रही है कि तेल की मांग को पूरा करने और हाल में हुई मूल्य वृद्धि के मद्देनज़र अगस्त में तेल उत्पादन को बढ़ाने पर सहमति बन सकती है।
बीते दिनों इन देशों ने मांग बढ़ने के कारण तेल उत्पादन बढ़ाया था लेकिन अब जिस तरह से तेल की कीमतें बढ़ रही हैं। ओपेक प्लस देशों का फैसला इससे प्रभावित हो सकता है। पिछले साल जब कोरोना महामारी की शुरुआत हुई थी तो तेल की मांग में अचानक आई।
तब सऊदी अरब और रूस की अगुवाई वाले इस संगठन ने कीमत बढ़ाने के लिए उत्पादन में बड़ी कटौती की थी। ओेपेक के 13 सदस्य देश और ओपेक प्लस में उनके दस साथी देशों के समूह को इस रणनीति का फायदा हासिल हुआ और तेल की कीमतें 75 डॉलर प्रति बैरल के स्तर तक सुधर गई।
फिलहाल ओपेक प्लस देशों का समूह बड़ी एहतियात के साथ तेल उत्पादन को नियंत्रित कर रहा है. हालांकि तेल का बाज़ार जिस तरह से मजबूत हो रहा है,ये उत्पादक देशों के लिए वरदान ही है।
कुछ देशों ने फायदे के लिए उत्पादन बढ़ा दिया है लेकिन इसके अपने जोखिम भी हैं। मिडीया रिपोर्ट के मुताबिक़ रूस उत्पादन बढ़ाने के पक्ष में रहा है। ओपेक प्लस की पिछली कई बैठकों में रूस का रुख यही रहा है।
सैक्सोबैंक के ओले हानसेन के मुताबिक़ "मुमकिन है कि रूस उत्पादन बढ़ाने का समर्थन करे ताकि वो अपनी बड़ी बाज़ार हिस्सेदारी को सुनिश्चित कर सके। साथ ही, ग़ैर ओपेक देश तेल का उप्तादन न बढ़ा लें, रूस ये भी सुनिश्चित करना चाहेगा।
आईएनजी बैंक के वॉरेन पैटरसन का कहना है कि "दबाव केवल ओपेक प्लस देशों के समूह के भीतर से ही नहीं है बल्कि बड़े खरीदार देश भी बाज़ार में नरमी चाहते हैं क्योंकि कई देश अभी कोविड लॉकडाउन से उबर ही रहे हैं।
तेल विश्लेषक स्टीफन ब्रेनॉक का कहना है कि भारत इसका उल्लेखनीय उदाहरण है। दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता देश बीते महीनों में कोरोना संकट से बुरी तरह से प्रभावित रहा है. भारत ने ओपेक प्लस देशों से तेल की बढ़ती कीमतों पर लगाम लगाने के लिए कदम उठाने की अपील की है।
थिंकमार्केट्स के फवाद रज़ाक़ज़ादा कहते हैं, अगर कीमतें यूं ही तेज़ रहीं तो इसका असर उपभोक्ताओं पर पड़ेगा. लोगों के पास खर्च करने के लिए पैसे नहीं होंगे और अर्थव्यवस्था का विकास रुकेगा. और आखिर में इसका असर कच्चे तेल की कीमतों पर पड़ेगा।
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