सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार को एंटी-सीएए नोटिसों पर कार्रवाई से रोका

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सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को यूपी सरकार से कहा है कि वह उन नोटिसों पर कार्रवाई न करे जो कि एंटी-सीएए विरोध प्रदर्शनों के दौरान भेजे गए थे। 

साल 2019-2020 में उत्तर प्रदेश के कई ज़िलों में सीएए विरोधी प्रदर्शनों के बाद प्रशासन ने कथित प्रदर्शनकारियों को सार्वजनिक संपंत्ति के नुकसान की भरपाई के लिए नोटिस भेजे थे।

इसके बाद उत्तर प्रदेश सरकार के इस कदम को आधारहीन एवं बेबुनियाद बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती दी गयी थी। 

सुप्रीम कोर्ट जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस एम आर शाह की बेंच ने उसी याचिका की सुनवाई करते हुए कहा है कि "पहले भेजे गए नोटिस के आधार पर कार्रवाई न की जाए"

हालांकि ,उत्तर प्रदेश सरकार ने साल 2021 के मार्च महीने में उत्तर प्रदेश लोक तथा निजी संपत्ति क्षति वसूली अधिनियम पारित किया है।

उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से पेश हुई सीनियर अडीशनल एडवोकेट जनरल गरिमा प्रसाद ने कहा है कि प्रदेश सरकार ने पिछली सुनवाई के बाद ट्राइब्यूनल गठित करने को लेकर सभी ज़रूरी नियमों को ड्राफ़्ट कर लिया है। 

इस पर कोर्ट ने कहा है कि प्रदेश सरकार क़ानून और नए नियमों के अनुसार क़दम उठा सकती है।

लेकिन सर्वोच्च अदालत ने उत्तर प्रदेश सरकार से ट्राइब्यूनल और नियमों की जानकारियों के साथ एक जवाबी हलफ़नामा दायर करने के लिए भी कहा है।

इसके साथ ही इस मामले में सुनवाई को दो हफ़्तों के लिए टाल दिया गया है। 

याचिकाकर्ता परवेज़ आरिफ़ टीटू ने अपनी याचिका में कहा था कि ये नोटिस मनमाने ढंग से भेजे गए हैं।

उन्होंने तर्क दिया कि एक नोटिस 94 वर्षीय व्यक्ति के नाम पर जारी किया गया है जिनकी मौत छह साल पहले हो गई थी। इसके साथ ही उन्होंने दावा किया है कि नोटिस पाने वाले दो लोग ऐसे हैं जिनकी उम्र नब्बे वर्ष से अधिक है।


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