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जवानों के लिए "सरकारी आवास"जी का जंजाल बन गया है
सीमा सुरक्षा बल 'बीएसएफ' के अधिकारियों और जवानों के लिए 'सरकारी आवास'जी का जंजाल बन गया है।मौजूदा समय में ये कर्मी 'नॉन फैमिली स्टेशन ' वाले इलाकों में तैनात हैं। वहां इनके पास सरकारी आवास नहीं है। चूंकि इनकी पोस्टिंग दिल्ली से हुई थी तो इनके पास सरकारी आवास रहा है।अब केन्द्रीय आवास एवं शहरी विकास मंत्रालय,अपने नियमों का हवाला देते हुए इन पर आवास खाली कराने का दबाव डाल रहा है। आर्थिक जुर्माना इतना ज्यादा है कि उसमें पूरी सेलरी ही खप जाएगी।
मंत्रालय का तर्क है कि नियम के तहत जोखिम वाले इलाकों में तैनात कर्मियों को तीन साल के लिए ही आवास मिलता है। इस बाबत बीएसएफ के 70 अधिकारी और जवान दिल्ली हाईकोर्ट पहुंच गए। इनकी दलील है कि हमने खुद से जोखिम वाले इलाकों में पोस्टिंग नहीं मांगी थी। कश्मीर, नॉर्थ ईस्ट या नक्सल में परिवार को कहां पर और कैसे साथ रखें। वहां तो आवास भी नहीं मिलता। हम तो फोर्स वाले हैं, इसलिए यहां पर तीन साल की पोस्टिंग का नियम लागू नहीं होता। दूसरी पोस्टिंग में पांच छह साल लग जाते हैं। दोबारा से 'नॉन फैमिली स्टेशन' मिल जाता है। ऐसे में हम अपने परिवार की सुरक्षा को खतरे में नहीं डालेंगे। बीएसएफ अधिकारियों और जवानों ने हाईकोर्ट से प्रार्थना की है कि उनके परिवारों को दिल्ली के सरकारी आवास में ही रहने दिया जाए।
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