मीराबाई याने केवल प्रेरणा
लेखक - संजय दुबे
इस लेख के साथ लगे तस्वीर को ध्यान से मैंने कई बार देखा, आप भी देखियेगा। ये तस्वीर चानू साइकोम मीराबाई की है( मिडिया इन्हें मीराबाई चानू लिखता है)। मणिपुर के रहने वालों के शारीरिक बनावट में आंखे आकार में छोटी होती है। चानू साइकोम मीराबाई मणिपुर से ही है सो उनकी आंखें भी छोटी है पर इन छोटी आंखों में चमक को देखिये। 140 करोड़ भारतीयों की आंखों की चमक को पूरा किये हुए आंख दिखती है,ये आंखे। उनके हाथ मे ओलम्पिक का रजतपदक है चमचमाता हुआ, साथ में है मास्क के पीछे छिपी अरबो रुपये की महंगी मुस्कान ,जो दिखती नही है लेकिन आंखे, जब आप मुस्कुराते है तो अपने आकार से थोड़ी छोटी हो जाती है। ऐसी ही छोटी आंखे मीराबाई की दिख रही है जो उनके चेहरे पर खींची हुई है इस मुस्कुराहट के कारण है। ये मुस्कुराहट उनके ही चेहरे की शोभा होती है जिसके सालो की मेहनत का परिणाम किसी अंतरास्ट्रीय स्तर पर सफल होता है।
ओलंपिक खेल की पवित्रता का महत्व अन्य किसी भी खेल की पवित्रता से बहुत ज्यादा अधिक है। ओलम्पिक में नगद राशि नही मिलती है लेकिन जिसे भी पदक मिलता है उसकी ख्याति स्थाई हो जाती है, रही बात मशहूर होने की तो कल से देश के हर किसी के जुबान पर एक ही नाम है- मीराबाई चानू। कल जब मीरा बाई के गले मे पदक लटका तो देश का गर्व देखते बनता था। मीराबाई इलेक्ट्रॉनिक औऱ प्रिंट मीडिया की सुर्खियों में है। कहते है कि एक परिवार अगर अपने बच्चे के कारण मशहूर होता है उसके सुख की कोई सीमा नही होती है। मीरा बाई ने ये उपलब्धि अपने देश के लोगो के साथ साथ अपने उस परिवार के लिए भी हासिल किया जो विपन्नता के चर्मोत्कर्ष को देखा है।
मीराबाई, अपनी किशोरावस्था में घर के रसोई में लगने वाली लकड़ी लेने जंगल जाती थी। तब वे औऱ भी छोटी रही होंगी लेकिन सामर्थ्य उनमे अद्वितीय था। वजन उठाना उनका शगल था, यही सामर्थ्य उनको पूर्वी इम्फाल से निकाल कर पहले रियो ओलिंपिक ले गया और अब टोक्यो। वे 2014 से वजन उठा रही है उनको विश्व स्तर में 2017 और 2018 में स्वर्णिम सफलता मिल चुकी है।कामनवेल्थ खेलो में वे रजत और स्वर्ण की विजेता है। टोक्यो ओलंपिक में चानू साइकोम मीराबाई ने क्लीन एन्ड जर्क में उन्होंने 115+87 कुल 202 किलो वजन उठाया वैसे वे स्वर्ण ले ही आती क्योकि लक्ष्य 210 किलो था। बीमार हालत में भी वे इतना बढ़िया प्रदर्शन! कि वे रजत पदक ले आयी।
उन्होंने देश की उम्मीद पूरी की अब देश की बारी है। रियो ओलंपिक में जब सिंधु ने रजतपदक जीता था तब आंध्रप्रदेश की सरकार ने सारे कायदे कानून को तोड़कर उन्हे प्रथम श्रेणी का शासकीय अधिकारी बनाने के लिए केबिनेट की बैठक में घोषणा की थी। क्या मीराबाई ओलंपिक में मणिपुर के प्रतिनिधित्व कर रही थी? या देश का। नरेंद्र मोदी साहसिक निर्णय लेने के लिए ख्यात है उनसे उम्मीद है कि वे मीराबाई को केंद्र में प्रथम श्रेणी की अधिकारी बनाने की घोषणा करे। सभी राज्य के मुख्यमंत्री मीराबाई सहित टोक्यो ओलंपिक में जीतने वालो को कम से कम 1 करोड़ औऱ ज्यादा चाहे तो उनकी मर्जी(जो धनराशि देंगे वो जनता का है,निज खाते से तो देंगे भी नही) अवश्य दे ताकि बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के नारे में बेटी खिलाओ भी पूरा हो सके।खाली बधाई तो केवल रश्म अदायगी है।
बहरहाल, देश की मिट्टी की सुगंध को जापान में आपने विस्तार दे दिया है ।कृतज्ञ राष्ट्र आपको शुभकामनाएं देता है ।आप आधी आबादी के साथ साथ पूरी आबादी के लिए प्रेरणा है।
आपका पद्मविभूषण पक्का है।खेल रत्न तो आप पहले ही हो चुकी है।
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