नीरज चोपड़ा के ओलंपिक में इतिहास रचने की रोमांचक कहानी जानिए

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नीरज चोपड़ा टोक्यो ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीतने वाले भारत के पहले खिलाड़ी बन गए हैं. 

उन्होंने 87.58 मीटर जैवलिन थ्रो (भाला फेंक) के साथ भारत की झोली में पहला गोल्ड मेडल डाल दिया. 

नीरज ने अपने पहले प्रयास में 87.03 मीटर, दूसरे में 87.58 और तीसरे प्रयास में 76.79 मीटर जैवलिन फेंका. 

इस प्रतिस्पर्धा में दूसरे और तीसरे स्थान पर चेक खिलाड़ी रहे. 

नीरज ने इसी साल मार्च में इंडियन ग्रॉ प्री-3 में 88.07 मीटर जैवलिन थ्रो के साथ अपना ही राष्ट्रीय रिकॉर्ड तोड़ा था.

जून के महीने में पुर्तगाल के लिस्बन शहर में हुए मीटिंग सिडडे डी लिस्बोआ टूर्नामेंट में उन्होंने स्वर्ण पदक अपने नाम किया था. 

पानीपत के गाँव से शुरू हुई कहानी

अंजू बॉबी जॉर्ज के बाद विश्व की किसी भी बड़ी एथलेटिक्स चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतने वाले नीरज सिर्फ़ दूसरे भारतीय एथलीट हैं. 

नीरज की कहानी शुरू होती है पानीपत के एक छोटे से गाँव से. यहाँ लड़कपन में नीरज भारी भरकम होते थे- क़रीब 80 किलो वज़न वाले. कुर्ता पायजामा पहने नीरज को सब सरपंच कहते थे.

फ़िटनेस ठीक करने के हिसाब से वो पानीपात में स्टेडियम जाने लगे और दूसरों के कहने पर जैवलिन में हाथ आज़माया. और वहीं से सफ़र शुरू हुआ.

बेहतर सुविधाओं की तलाश में नीरज पंचकुला शिफ्ट कर गए और पहली बार उनका सामना राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ियों से हुआ. उन्हें बेहतर सुविधाएं मिलने लगीं. 

जब राष्ट्रीय स्तर पर खेलने लगे तो ख़राब क्वॉलिटी वाली जैवलिन की बजाय हाथ में बढ़िया जैलविन आ गई. धीरे-धीरे नीरज के खेल में तब्दीली आ रही थी. 

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चमके जब 2016 में भारत पीवी सिंधु और साक्षी मलिक के मेडल का जश्न मना रहा था तो एथलेक्टिस की दुनिया में कहीं और एक नए सितारे का उदय हो रहा था.

ये वही साल है, जब नीरज ने पोलैंड में U-20 विश्व चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीता. 

जल्द ही ये युवा खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर छाने लगा. उन्होंने गोल्ड कोस्ट में हुए राष्ट्रमंडल खेलों में 86.47 मीटर के जैवलिन थ्रो के साथ स्वर्ण पदक जीता तो 2018 में एशियाई खेलों में 88.07 मीटर तक जैवलिन थ्रो कर राष्ट्रीय रिकॉर्ड बनाया था और स्वर्ण पदक भी जीता 

चोट ने मुश्किलों में डाला लेकिन 2019 नीरज चोपड़ा के लिए बेहद मुश्किलों भरा रहा. कंधे की चोट के कारण वे खेल नहीं पाए और सर्जरी के बाद कई महीने तक आराम करना पड़ा। फिर 2020 आते-आते तो कोरोना के चलते अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताएँ नहीं हो पाईं. 

हालांकि ये पहली बार नहीं है, जब घायल होने की वजह से नीरज को इस कदर परेशानी हुई हो.

2012 में जब वो बास्केटबॉल खेल रहे थे, तो उनकी कलाई टूट गई. वही कलाई जिससे वो थ्रो करते हैं. तब नीरज ने कहा था कि एक बार उन्हें लगा था कि शायद वे न खेल पाएँ. 

लेकिन नीरज की मेहनत और उनकी टीम की कोशिश से वो उस पड़ाव को भी पार गए. 

आज की तारीख़ में भले उनके पास विदेशी कोच हैं, बायोमैकेनिकल एक्सपर्ट हैं, पर 2015 के आस-पास तक नीरज ने एक तरह से ख़ुद ही अपने आप को ट्रेन किया, जिसमें घायल होने का ज़्यादा ख़तरा बना रहता है. उसके बाद ही उन्हें अच्छे कोच और दूसरी सुविधा मिलने लगी. 

खेल के लिए नॉनवेज खाना शुरू किया 

रियो ओलंपिक में खेलने से नीरज चूक गए थे क्योंकि उन्होंने क्वॉलिफ़िकेशन मार्क वाला थ्रो जब लगाया तब तक क्वॉलाफ़ाई करने की आख़िरी तारीख़ निकल चुकी थी. 

ये नीरज के लिए दिल टूटने वाला अनुभव था. लेकिन टोक्यो में नीरज ने ऐसा नहीं होने दिया. 

जैवलिन तो नीरज का पैशन है पर बाइक चलाने का भी नीरज को बहुत शौक है और साथ ही हरियाणवी रागिनियों का भी. पंजाबी गाने और बब्बू मान उनकी प्लेलिस्ट में रहते हैं. 

कभी शाकाहारी रहे नीरज अब अपने खेल की वजह से नॉनवेज भी खाने लगे हैं. 

खाने की बात चली है तो खिलाड़ी को डायट के हिसाब से चलना ही पड़ता है पर गोलगप्पों को वे अपना पंसदीदा जंक फूड मानते हैं. 

उनके लंबे बालों की वजह से सोशल मीडिया पर लोग उन्हें मोगली के नाम से भी जानते हैं. शायद लंबे बालों और फुर्तीलेपन की वजह से. 

यही फ़ुर्ती नीरज को ओलंपिक तक लेकर आई है. नीरज अभी 23 साल के हैं और उनकी नज़र 2024 के पेरिस ओलंपिक पर है. 


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