सियासत: टीएमसी के लिए त्रिपुरा की राह आसान बनाएंगी सुष्मिता

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सुष्मिता देव ने अपने राजनीतिक भविष्य को लेकर कांग्रेस छोड़ी है। असम के सिलचर से 2019 के लोकसभा चुनाव में मिली हार उनकी चिंता का सबसे बड़ा कारण है क्योंकि 2014 में मोदी की प्रचंड लहर में वह यहां से जीती थी।

उनके पिता संतोष मोहन देव सिलचर से ही पांच बार सांसद रहे।वह असम की स्थानीय राजनीति में सीएए और एनआरसी को लेकर खुद को घिरा महसूस कर रही थीं। शायद यही कारण है कि उन्हें पिता के नक्शेकदम पर चलकर आगे का रास्ता दिख रहा है।

असम में जिस तरह एनआरसी के बाद राजनीतिक ध्रुवीकरण हुआ है और विधानसभा चुनाव में भाजपा जीतकर आई है, उनकी राजनीतिक विरासत भी प्रभावित हुई है। हालांकि सीएए और एनआरसी को लेकर टीएमसी का रुख भी कांग्रेस की तरह ही है।

सुष्मिता के पिता संतोष मोहन ऐसे सांसद रहे हैं जो नार्थ ईस्ट के असम और त्रिपुरा दोनों जगहों पर सक्रिय रहे। वह सात बार में से पांच बार सिलचर से और दो बार त्रिपुरा पश्चिम से भी 1989 और 1991 में सांसद रहे।

इसकी कमान भतीजे अभिषेक बनर्जी को सौंपी है। टीएमसी सुष्मिता को आगे लाकर राजनीतिक फायदा उठाना चाहेगी। वह भी पिता की तर्ज पर अब त्रिपुरा के लोगों को बताएंगी कि यहां से भी उनका पुराना रिश्ता है। सुष्मिता ने टीएमसी में शामिल होने से कुछ दिनों पूर्व ही अपने ट्विटर हैंडल पर पिता संतोष मोहन देव का चित्र भी लगा लिया था।

त्रिपुरा में कांग्रेस को पहले ही मिल चुका है झटका 

टीएमसी ने बंगाल की तरह त्रिपुरा में भी कांग्रेस का विकल्प बनने का फैसला किया है. अगर सुष्मिता त्रिपुरा की राजनीति में सक्रिय होती हैं तो कांग्रेस की मुश्किलें और बढ़ेगी. कांग्रेस को करीब दो साल पहले प्रद्योत माणिक्य ने झटका दिया था.

राहुल गांधी के करीबी रहे प्रद्योत त्रिपुरा कांग्रेस के युवा अध्यक्ष थे. कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में किसी विषय में अपनी बात रखने को लेकर कुछ लोगों की आपत्ति ने उन्हें पद छोड़ने पर मजबूर किया था.

त्रिपुरा में अपनी पार्टी टीआईपीआरए बनाकर प्रद्योत सक्रिय हैं और लोगों के बीच उनकी अच्छी पकड़ भी है. टीएमसी सूत्रों के मुताबिक कहीं न कहीं प्रद्योत के साथ तालमेल कर पार्टी त्रिपुरा में सरकार बना सकती है.


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