आज की कविता : "जिंदगी में जिसको भी गिरकर संभलना आ गया ,जिंदगी के रास्तों पर उसको चलना आ गया"
रचना - विजय कश्यप 'दीप'
एक नई ग़जल (सजल )
जिंदगी में जिसको भी गिरकर संभलना आ गया, जिंदगी के रास्तों पर उसको चलना आ गया l
है कहाँ मुमकिन कि दुनियाँ को बदल डाले कोई, है वो सुखी जग में जिसे , खुद को बदलना आ गया।
जीत ले क्षण में यहाँ जो दर्द को मुस्कान से, फिर उस हसीं इंसान को हर जंग लड़ना आ गया l
डर रहें थें कल तलक जो फड़फड़ाने पंख को, एक दिन ऐसे परिंदो को भी उड़ना आ गया l
चार अक्षर पढ़ लिये बेटे ने क्या स्कूल की, वो समझता है उसे इंसान पढ़ना आ गया l
ख़ौफ़ गिरने का भला उनको सताता किस तरह, शिखरों पर जिनको नंगे पांव चढ़ना आ गया l
तालियाँ उनके लिये बजती सदा हर -काल में, मंच पर जिसे जिंदगी के , किरदार गढ़ना आ गया l
"आज की कविता के लेखक विजय कश्यप 'दीप' जी है। ये पेशे से शिक्षक है। शिक्षण कार्यो के साथ-साथ ये साहित्य और कविता लेखन में भी रुचि रखते है। ये धमतरी जिले के ग्राम खिसोरा निवासी है।"
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