नरेंद्र मोदी को क्या लोकप्रियता में गिरावट से चिंतित होना चाहिए?

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नरेंद्र मोदी एक लंबे समय से भारतीय मतदाताओं के दिलों पर राज कर रहे हैं. उन्होंने आर्थिक और संगठनात्मक रूप से मज़बूत भारतीय जनता पार्टी के दम पर लगातार दो आम चुनावों में जीत हासिल की हैऊ.

नरेंद्र मोदी ने हिंदू राष्ट्रवाद के नाम पर एक मज़बूत राजनीतिक ज़मीन तैयार कर अपने करिश्मे और राजनीतिक चातुर्य से मतदाताओं को रिझाते हुए विरोधियों को मात दी है. लेकिन ये भी मानना होगा कि किस्मत ने भी उनका भरपूर समर्थन किया है.

 उनके समर्थकों ने जल्दबाज़ी में लिए गए फैसलों जैसे नोटबंदी (साल 2016 में 500 और 1000 रुपये के नोटों का अचानक बंद होना)के लिए उन्हें माफ़ कर दिया है.

अर्थव्यवस्था के एक अपेक्षाकृत रूप से ख़राब दौर से गुज़रने के बाद, विशेषत: महामारी के बाद,ऐसा लगता है कि उनके प्रति लोगों का समर्थन कम नहीं हुआ है और एक मज़बूत विपक्ष की कमी भी उनके लिए मददगार साबित हुई है.

लोकप्रियता में भारी गिरावट 

राष्ट्रीय मैग़जीन के एक सर्वेक्षण में सामने आया है कि सिर्फ 24 फ़ीसदी लोग ये मानते हैं कि 70 वर्षीय नरेंद्र मोदी भारत के नये प्रधानमंत्री बनने के लिए उपयुक्त उम्मीदवार हैं. इस सर्वे में 14,600 लोगों ने हिस्सा लिया था.

प्रधानमंत्री पद के लिए अगले आम चुनाव साल 2024 में होने वाले हैं. इस सर्वे में साल भर पहले किए गए एक ऐसे ही सर्वे की तुलना में 42 अंकों की गिरावट दर्ज की गयी है.

लंबे समय तक ऐसे सर्वेक्षणों का अनुभव रखने वाले राजनेता और प्रधानमंत्री मोदी के आलोचक योगेंद्र यादव बताते हैं,"ओपिनियन पोलिंग के 20 साल लंबे अनुभव में मुझे ऐसा कोई वाक्य याद नहीं है जब किसी प्रधानमंत्री की लोकप्रियता में इतनी भारी गिरावट देखी गयी हो.

नरेंद्र मोदी के लिए ये साल बेहद चुनौतीपूर्ण रहा है. कोरोना वायरस की दूसरी लहर में लाखों लोगों की मौत हुई. सरकार द्वारा इससे निपटने के लिए उचित कदम नहीं उठाए गए जिसकी वजह से पीएम मोदी की बेहद सावधानीपूर्वक बनाई गयी छवि को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर धक्का पहुंचा है.

इसके साथ ही अर्थव्यवस्था में संघर्ष जारी है. मुद्रास्फीति काफ़ी ज़्यादा है, पेट्रोल और डीजल के दाम आसमान पर हैं और खर्च एवं नौकरियों में कमी दर्ज की जा रही है.

 


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