आज की कविता : "सफर में दौड़ते-दौड़ते जब थक जाओ, तो थोड़ा रुक कर आराम कर लेना"

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सफर में दौड़ते-दौड़ते जब थक जाओ, तो थोड़ा रुक कर आराम कर लेना।

बार-बार गर्त में गिर जाने से तो अच्छा है, एक बार में ही जमीं पर लेट जाना सीधा आसमान दिखता है वहां से बिल्कुल साफ और सुंदर, बीच में धुंधला कुछ नहीं रहता।

आंखों के साथ जब दिल भी रो लेता है तो, आंख ही नहीं बल्कि मन भी हल्का हो जाता है।

हम सभी जिंदगी के वो मुसाफिर है जो राहों में अंजानो से टकराते रहते है। कुछ आवाजें कानों से चलकर दिल में उतर जाती है और समय का ये कारवां चलता जाता है।

रचनाकार - पूजा देवांगन


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