असम: फ़ेसबुक पर तालिबान की तारीफ़ की तो पुलिस ने लगाया UAPA क़ानून, अब हाई कोर्ट ने दी ज़मानत

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गुवाहाटी हाई कोर्ट ने गैरकानूनी गतिविधियों की रोकथाम संबंधी कानून यूएपीए के तहत गिरफ्तार किए गए एक अभियुक्त को ये कहते हुए जमानत दी है कि यह संदेहास्पद था कि क्या अकेले फेसबुक पोस्ट की सामग्री को एक संज्ञेय अपराध माना जाएगा?

अदालत का यह फैसला बीते 6 अक्टूबर का है. दरअसल पिछले 15 अगस्त को अफगानिस्तान पर 'तालिबान' द्वारा कब्जा करने के बाद आरोपी मौलाना फजलुल करीम कासिमी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए एक फेसबुक पोस्ट में लिखा था कि अफगानिस्तान में 'तालिबान' आतंकवादी नहीं हैं.

ऐसे फेसबुक पोस्ट के आधार पर एफआईआर दर्ज कर उन्हें यूएपीए कानून के तहत गिरफ्तार कर लिया गया था.

इस मामले की सुनवाई करने वाले न्यायमूर्ति सुमन श्याम की खंडपीठ ने कहा कि यह संदेहास्पद था कि क्या अकेले फेसबुक पोस्ट की सामग्री संज्ञेय अपराध होगी.

दरंग जिले के घिलाकुरी गांव के रहने वाले कासिमी को भारतीय दंड संहिता की कई धाराओं और गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) संशोधन अधिनियम, 1967 की धारा 39 के तहत गिरफ्तार किया गया था.

अभियुक्त कासिमी के वकील दिगंता दास ने यह तर्क देते हुए जमानत मांगी कि अदालत ने ऐसे ही एक मामले में 23 सितंबर को एक अन्य आवेदक को जमानत दी है, जिसमें एक समान कार्यवाही दर्ज की गई थी और आवेदक को ऐसी राय व्यक्त करने के लिए गिरफ्तार किया गया था.

खंडपीठ ने केस डायरी के अवलोकन के बाद कहा कि आवेदक के खिलाफ सिवाय एक फेसबुक पोस्ट के कुछ भी आपत्तिजनक नहीं है.यहां तक कि अगर यह स्वीकार कर लिया जाता है कि आवेदक फेसबुक पोस्ट का लेखक है, तब भी अन्य आपत्तिजनक सामग्री के अभाव में यह संदेहास्पद है कि क्या अकेले इस पोस्ट की सामग्री से एक संज्ञेय अपराध बनेगा.

अदालत ने कहा कि इस मामले में आवेदक को और अधिक हिरासत में रखने की आवश्यकता नहीं है और आरोपी को 20 हजार रुपये के बांड प्रस्तुत करने पर जमानत दे दी गई.

पिछले सप्ताह एक ऐसे ही मामले में गुवाहाटी हाई कोर्ट ने फेसबुक पोस्ट के जरिए तालिबान की प्रशंसा करने वाले मकबूल आलम नाम के एक व्यक्ति को जमानत दी थी.


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