नेपाल क्या एक बार फिर संवैधानिक संकट की ओर बढ़ रहा है?

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नेपाल के सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस चोलेंद्र शमशेर राना ने इस्तीफ़ा देने से इनकार कर दिया है. उन पर ये आरोप है कि उन्होंने अपने करीबी रिश्तेदार को शेर बहादुर देउबा की कैबिनेट में मंत्री पद दिलाने में मदद की थी.

 इस आरोप के सामने आने के बाद नेपाल की न्यायपालिका में अभूतपूर्व संकट पैदा हो गया है. स्थानीय मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, नेपाल बार एसोसिएशन और नेपाली सुप्रीम कोर्ट के अन्य जजों ने मुख्य न्यायाधीश के इस्तीफे की मांग की है लेकिन चीफ़ जस्टिस ने इस्तीफा देने से इनकार कर दिया है.

नेपाल बार एसोसिएशन के कुछ वकील सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही का बहिष्कार कर रहे हैं.

मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट के 15 जजों के साथ हुई एक मीटिंग के दौरान चीफ़ जस्टिस चोलेंद्र शमशेर राना ने कहा कि वे महज इस वजह से पद नहीं छोड़ने जा रहे हैं कि मीडिया में और सड़कों पर उनके मुख्य न्यायाधीश के पद से हटने के लिए आवाज़ें उठ रही हैं.

सुप्रीम कोर्ट के प्रवक्ता बाबूराम दहल ने कहा, "चीफ़ जस्टिस ने अन्य जजों से कहा है कि वे पद छोड़ने के बजाय संवैधानिक प्रक्रिया का पालन करना अधिक पसंद करेंगे. मैं किस दबाव में पद नहीं छोड़ूंगा. लेकिन अगर ज़रूरत पड़ी तो मैं क़ानूनी प्रक्रिया का पालन करूंगा."

सुप्रीम कोर्ट के वकीलों के एक तबके ने सर्वोच्च अदालत की कार्यवाही के बहिष्कार का फ़ैसला किया है. इसका असर कई मामलों की सुनवाई पर पड़ा है.

नेपाल बार एसोसिएशन ने ये भी चेतावनी दी है कि अगर चीफ जस्टिस ने स्वेच्छा से पद नहीं छोड़ा तो राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन आयोजित किए जाएंगे.


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