Meta :फ़ेसबुक का नया नाम, जानिए इंटरनेट का भविष्य बताए जाने वाला 'मेटावर्स' आख़िर है क्या?

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सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म फ़ेसबुक ने अपनी ब्रैंडिंग में बड़ा बदलाव करते हुए अपना कॉर्पोरेट नाम बदल कर 'मेटा' कर लिया है.

कंपनी ने कहा है कि वो जो काम करती है, नया नाम उसे बेहतर तरीके से बताता है.

साथ ही कंपनी सोशल मीडिया के इतर वर्चुअल रियलिटी जैसे क्षेत्रों में अपने काम का दायरा बढ़ाने जा रही है.

फ़ेसबुक ने हाल में घोषणा की थी कि 'मेटावर्स' का विकास करने के लिए वो यूरोप में 10,000 लोगों को बहाल करेगी.

मेटावर्स आख़िर है क्या?

बाहरी लोगों को लग सकता है कि मेटावर्स, वर्चुअल रियलिटी (वीआर) का ही सुधरा हुआ रूप है. हालांकि कई लोग इसे इंटरनेट का भविष्य तक मानते हैं.

वास्तव में, कई लोगों को लगता है कि वीआर के लिहाज से मेटावर्स वही तकनीक साबित हो सकती है, जैसा अस्सी के दशक वाले भद्दे फोन की तुलना में आधुनिक स्मार्टफोन साबित हुआ है.

मेटावर्स में सभी प्रकार के डिजिटल वातावरण को जोड़ने वाले 'वर्चुअल वर्ल्ड' में दाख़िल होने के लिए कंप्यूटर की जगह केवल हेडसेट का उपयोग किया जा सकता है.

इसमें फ़ेसबुक क्यों शामिल है?

फ़ेसबुक ने मेटावर्स को अपनी बड़ी प्राथमिकताओं में से एक बना लिया है

. कुछ जानकारों के अनुसार, फ़ेसबुक ने अपने 'ओकुलस हेडसेट्स' के जरिए वर्चुअल रियलिटी के क्षेत्र में भारी निवेश किया है. इससे यह उसकी प्रतिद्वंद्वी कंपनियों की तुलना में सस्ता हो गया है. हालांकि सस्ता होने से उसे नुक़सान भी है.

फ़ेसबुक सोशल हैंगआउट और वर्कप्लेस के लिए वर्चुअल रियलिटी के कई ऐप भी बना रहा है. इसमें वास्तविक दुनिया के साथ जुड़ने वाले ऐप भी शामिल हैं.

प्रतिद्वंद्वियों को खरीदने के फ़ेसबुक के इतिहास के बावजूद कंपनी का दावा है कि मेटावर्स को "कोई एक कंपनी रातोरात नहीं बना सकती" है. इसलिए उसने मिलकर काम करने का भी वादा किया है.

इसने हाल में, ग़ैर-लाभकारी समूहों को "जिम्मेदारी के साथ मेटावर्स बनाने" में सहयोग देने के लिए 5 करोड़ डॉलर का निवेश किया है. लेकिन फ़ेसबुक का मानना है कि मेटावर्स के दुरुस्त विचार को आकार लेने में 10 से 15 साल लग जाएंगे.


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