COP 26: जलवायु संकट के हल के लिए इन चेहरों पर टिकी हैं निगाहें

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करीब दो सौ मुल्कों के 20 हज़ार प्रतिनिधि ग्लास्गो में जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में हिस्सा लेने वाले हैं. इसके लिए बड़ी संख्या में जलवायु परिवर्तन के विशेषज्ञ, कार्यकर्ता और पत्रकार भी ग्लास्गो में हैं.

 लेकिन इस भीड़ में प्रमुख किरदार कौन-कौन हैं -

जो बाइडन

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने, डोनाल्ड ट्रंप के उस फ़ैसले को पलट दिया था जिसमें ट्र्ंप ने पेरिस एग्रीमेंट से अमेरिका को अलग कर लिया था. अब बाइडन ने क्लाइमेंट चेंज के विरुद्ध लड़ाई को अपनी प्राथमिकता बना लिया है. अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और कार्बन उत्सर्जन के मामले में दूसरे स्थान पर है. बाइडन इस सम्मेलन में अहम रोल अदा कर सकते हैं.

शेई ज़ेनहुआ

शेई क्लाइमेट पर चीन के विशेष दूत हैं. वे इस सम्मेलन में अपने राष्ट्रपति शी जिनपिंग का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. शेई साल 2007 से 2018 तक जलवायु से जुड़े मुद्दों पर हुई वार्ताओं में चीन के प्रमुख वार्ताकार थे. माना जाता है कि पेरिस एग्रीमेंट में भी शेई ने अहम भूमिका निभाई थी. जलवायु परिवर्तन पर चीन जो भी तय करेगा, उसका असर सारी पृथ्वी पर पड़ेगा क्योंकि दुनिया भर में होने वाले कार्बन उत्सर्जन का 28% हिस्सा चीन का ही है.

पेट्रिशिया एस्पिनोसा

इस्पिनोसा मैक्सिको की पूर्व विदेश मंत्री हैं. वे संयुक्त राष्ट्री चीफ़ क्लाइमेंट नेगोशिएटर हैं. वे इस शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने कुछेक महिलाओं में से एक हैं.

नरेंद्र मोदी

चीन और अमेरिका के बाद भारत दुनिया का तीसरा सबसे अधिक कार्बन उत्सर्जन करने वाला देश है. भारत ने न तो अपने ‘नेट-ज़ीरो’ वर्ष की घोषणा की है और न ही संयुक्त राष्ट्र को अपनी अपडेट्ड जलवायु योजना पेश की है.

नेट-ज़ीरो का अर्थ है कि जितना संभव हो ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करना और फिर पृथ्वी पर पेड़ आदि लगाकर या दूसरे क़दम उठाकर संतुलन बनाना.

पेरिस समझौते के तहत हर पांच साल ये योजना जारी करनी होती है. बहुत से जानकारों को उम्मीद है कि प्रधानमंत्री मोदी ग्लास्गो में कुछ ठोस वादे करेंगे.

आलोक शर्मा

ब्रितानी सांसद आलोक शर्मा COP 26 के अध्यक्ष हैं. उनका काम यहां आए प्रतिनिधियों को ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को सीमित करने के लिए राज़ी करना है.


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