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जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए 2022 तक 100 बिलियन डॉलर का फ़ड
जलवायु परिवर्तन पर अमेरिकी राष्ट्रपति के विशेष दूत जॉन कैरी ने कहा है कि क्लाइमेट चेंज से निपटने के लिए ग़रीब देशों को दिए जाने वाला फंड अगले साल सौ बिलियन डॉलर तक पहुँच जाएगा.
स्कॉटलैंड के ग्लास्गो में हुए जलवायु परिवर्तन पर शिखर सम्मेलन में सबसे बड़ी चिंता यही थी कि ग़रीब मुल्क़ कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए ज़रूरी टेक्नोलॉजी पर ख़र्च कहां से करेंगे.
अमेरिका और वर्ल्ड इकोनॉमिक फ़ोरम ने एक दुनिया की 24 बड़ी कंपनियों का एक गठबंधन भी बनाया है जो 2030 तक कम कार्बन उत्सर्जन वाले उत्पाद ख़रीदेगा. इसका मकसद ग्रीन सप्लाई चैन के निर्माण के ज़रिए जलवायु परिवर्तनों के लक्ष्य को पूरा करना है
बहुत से छोटे देशों को कोयले जैसी ईंधन से छुटकारा पाने के लिए वैकल्पिक ऊर्जा संसाधनों की ज़रूरत होगी. लेकिन ये ख़र्चीला परिवर्तन है.
कल ही ब्रिटेन के ऊर्जा मंत्री ने कहा था कि दुनिया के चालीस देश कोयले के इस्तेमाल को चरणबद्ध तरीके से बंद करने के लिए राज़ी हो गए हैं. लेकिन इनमें भारत और चीन जैसे बड़े मुल्क़ शामिल नहीं हैं.
भारतीय प्रधानमंत्री ने इस सम्मेलन में वादा किया है कि भारत साल 2070 नेट ज़ीरो के लक्ष्य को पूरा कर लेगा. जिसका अर्थ है कि उस साल तक भारत में कार्बन उत्सर्जन और उससे निपटने के लिए किए गए उपायों (जैसे वृक्षारोपण) में संतुलन हो जाएगा.
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