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संविधान दिवस के मौके पर बोले चीफ़ जस्टिस, न्यायपालिका का मकसद कार्यपालिका की जगह लेना नहीं
भारत के सर्वोच्च न्यायाधीश एनवी रमन्ना ने शुक्रवार को कहा है कि संविधान ने कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका के बीच शक्तियों के बंटवारे की जो लक्ष्मण रेखा खींची है वह पवित्र है.
संविधान दिवस के मौके पर आयोजित कार्यक्रम में चीफ़ जस्टिस रमन्ना ने न्यायपालिका पर बढ़ते हुए हमलों से लेकर न्यायिक अधिकारियों पर बढ़ते हुए शारीरिक हमलों को लेकर चिंता जताई.
पीएम मोदी की मौजूदगी में बोलते हुए चीफ़ जस्टिस एनवी रमन्ना ने कहा, “न्यायपालिका के लिए सबसे ज़्यादा चिंता के विषयों में से एक जजों पर बढ़ते हुए शारीरिक हमले हैं. न्यायिक अधिकारियों पर हमलों के मामले बढ़ रहे हैं. इसके साथ ही मीडिया, विशेषत: सोशल मीडिया पर न्यायपालिका पर हमले हो रहे हैं."
"ऐसा प्रतीत होता है कि ये हमले स्पॉन्सर्ड और एक दूसरे से जुड़े हुए हैं. कानून का पालन करवाने वाली संस्थाओं विशेषत: केंद्रीय संस्थाओं को इस तरह के दुर्भावनापूर्ण हमलों का प्रभावी ढंग से सामना करने की ज़रूरत है. सरकारों से एक सुरक्षित वातावरण बनाने की अपेक्षा की जाती है जिससे न्यायाधीश और न्यायिक अधिकारी निडरता के साथ अपना काम कर सकें.”
न्यायपालिका द्वारा अपनी सीमा से बाहर जाने से जुड़ी आलोचना पर उन्होंने कहा, “संविधान ने जो लक्ष्मण रेखा खींची है, वह पवित्र है. लेकिन कभी – कभी ऐसे मौके आते हैं जब अदालतें न्याय की ख़ातिर लंबित मामलों की ओर ध्यान खींचने के लिए मजबूर होती है. ऐसे सीमित न्यायिक दखलों का उद्देश्य कार्यपालिका का ध्यान खींचना है. न कि उसकी भूमिका अख़्तियार करना.”
उन्होंने कहा कि न्यायपालिका की ओर से किए जाने वाले इन दखलों को एक संस्थान द्वारा संस्थान को निशाना बनाने के रूप में देखना ग़लत है, अगर इसे इसी तरह देखे जाने को बढ़ावा मिलता है तो ये प्रयास लोकतंत्र की सेहत के लिए बेहतर नहीं होंगे.
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