IGKV के वैज्ञानिकों ने इजात किया चावल से प्रोटीन बनाने नया तरीका
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने चावल से प्रोटीन बनाने का एक ऐसा नया तरीका इजाद किया है, जो प्रोटीन इंडस्ट्री की तस्वीर बदल सकता है। इस तरीके से बेहद कम खर्च से चावल से प्रोटीन बनाया जाता है और बचा हिस्सा पूरी तरह से प्राकृतिक शक्कर बन जाता है। विश्वविद्यालय ने इस नई तकनीक के पेटेंट के लिए आवेदन भी कर दिया है।
डॉ. सतीश वेरुलकर और डॉ. शुभा बैनर्जी। दोनों रायपुर के इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के प्लांट मॉलिक्यूलर बायोलॉजी और बायोटेक्नोलॉजी डिपार्टमेंट से हैं, जिन्होंने चावल से प्रोटीन बनाने का नया तरीका इजाद किया है। इन दोनों वैज्ञानिकों ने बेहद कम पूंजी और आसान प्रक्रिया के जरिए चावल से प्रोटीन बनाया है। ये इतना आसान है कि इसे घरेलु उद्योग के तौर पर भी शुरू किया जा सकता है। चावल से बने प्रोटीन की डायजेस्टिबिलिटी 90 प्रतिशत से ज्यादा है, जो मार्केट में मौजूद दूसरे प्रोटीन से कहीं बेहतर है। विश्वविद्यालय की ओर से प्रोटीन बनाने के इस नए तरीके के पेटेंट के लिए आवेदन भी कर दिया गया है।
ये खोज छत्तीसगढ़ में प्रोटीन इंडस्ट्री स्थापित कर सकती है, क्योंकि यहां हर साल करीब 30 हजार मीट्रिक चावल अतिशेष बच जाता है। पूरी दुनिया में प्रोटीन का 11 बिलियन डॉलर का मार्केट है, जिसमें भारत में 2 बिलियन डॉलर की खपत है। फिलहाल बाजार में व्हे और सोया प्रोटीन का शेयर सबसे अधिक है। ऐसे में प्लांट बेस्ड प्रोटीन की ज्यादा डिमांड के चलते ये खोज बेहद अहम जाती है।
वैज्ञानिकों का दावा है कि चावल से प्रोटीन और शक्कर बनाने के बाद चावल की वैल्यू चार गुना हो जाती है। यानि 100 रुपये के चावल को प्रोसेस्ड कर 400 रुपये का प्रोटीन और शक्कर बनाया जा सकता है। ऐसे में धान का कटोरा कहे जाना वाला ये प्रदेश प्रोटीन के क्षेत्र में भी एक बड़ा नाम बन कर उभर सकता है।
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