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शक्ति संतुलन के लिए संविधान में है सरकार, संसद और सुप्रीम कोर्ट के अधिकारों का बंटवारा
पिछले दिनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों और उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों के सम्मलेन में सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश ने लक्ष्मण रेखा की बात की थी। न्यायाधिकरण में नियुक्ति के मामले में बहस के दौरान अटार्नी जनरल ने कहा था कि संविधान में सरकार, संसद और सुप्रीम कोर्ट के अधिकारों का बंटवारा है, इसलिए नीतिगत मामलों में अदालतों को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। इस सम्मलेन में लंबित मामलों और जेलों में बंद बेगुनाह कैदियों के दो महत्वपूर्ण मुद्दों पर सार्थक बहस हुई।
प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति रमना ने कहा कि पिछली कॉन्फ्रेंस 2016 में हुई थी, तब 2.61 करोड़ लंबित मामलों के निपटारे के लिए जिला अदालतों में 24,112 जज थे। अब छह साल बाद जिला अदालतों में लंबित मामलों की संख्या 55 फीसदी बढ़कर 4.1 करोड़ हो गई, लेकिन जजों की संख्या में सिर्फ 16 फीसदी वृद्धि हुई है। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि जिला जजों की अध्यक्षता में कमेटी बनाकर जेलों में बंद 3.5 लाख से ज्यादा विचाराधीन कैदियों की जल्द रिहाई के लिए ठोस प्रयास होने चाहिए।
जेलों में बंद लोग पुरातन कानूनी व्यवस्था या पुलिस ज्यादती के शिकार हैं, पर इसके लिए अदालतों की ज्यादा जवाबदेही है। लाखों बेगुनाह मुकदमों में विलंब या जमानत नहीं मिलने की वजह से जेलों में बंद हैं। संविधान के अनुच्छेद 14 में बराबरी और 21 में सभी को जीवन का अधिकार हासिल है। जेलों में बंद अधिकांश विचाराधीन कैदियों को (जो गरीब, अशिक्षित और वंचित वर्ग के हैं) जल्द रिहाई का सांविधानिक हक है। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने हाल ही में एक अहम फैसला दिया है।
प्रेमिका की हत्या के आरोप में गलत अभियोजन के कारण एक डॉक्टर को 13 साल जेल में काटना पड़ा, जिससे उसका जीवन तबाह हो गया। अदालत ने उसकी आजीवन कारवास की सजा रद्द करते हुए, तीन महीने के भीतर उसे 42 लाख रुपये का मुआवजा देने और भुगतान में विलंब होने पर नौ फीसदी ब्याज देने का आदेश दिया। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने आयकर विभाग द्वारा जारी 90 हजार नोटिसों को वैध ठहराते हुए इलाहाबाद, बंबई, कोलकाता, दिल्ली, मद्रास और राजस्थान हाई कोर्ट के अनेक फैसलों में बदलाव कर दिया।
अपने विशेष अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश दिया है, जिससे देश भर में चल रहे नौ हजार मुकदमे खत्म हो जाएंगे। जब टैक्स मामलों में सुप्रीम कोर्ट अपने विशिष्ट अधिकारों का इस्तेमाल कर सकती है, तो फिर लाखों लोगों के जीवन और उनके परिवार के कल्याण के लिए ऐसा आदेश क्यों नहीं दिया जा सकता? गिरफ्तारी होने पर बेल नियम और जेल अपवाद है। वंचित वर्ग को न्याय देने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने कई आदेश पारित किए हैं, तो फिर विचाराधीन कैदियों के मामलों में भी वह ऐसा कर सकती है।
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