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देर आए, दुरुस्त आए : आज न तो राज है, न ही कोई राजा, न राजतंत्र है और न ही राजशाही
आज न तो राज है, न ही कोई राजा। न राजतंत्र है और न ही राजशाही। ब्रिटिश राज आज से पचहत्तर साल पहले ही खत्म हो गया था। आज लोक का तंत्र है और प्रधान सेवक हैं। मगर अंग्रेजों द्वारा भारतीय दंड संहिता में जोड़ा गया राजद्रोह कानून आज भी चलता आ रहा था। राज के द्वारा ही बनाई गई न्याय व्यवस्था आज तक राजद्रोह कानून के होने का औचित्य ढूंढ़ रही थी। जनता को इससे मुक्ति दिलाने की मुहिम चलाई जा रही थी।
हिंदुस्तान में स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव भी मनाया जा रहा है। सरकार के ढीले-ढाले रवैये के बावजूद सर्वोच्च न्यायालय ने अपना फैसला सुनाते हुए राज के इस राजद्रोह कानून पर रोक लगा दी है। देश इस राजतंत्र के कानून से स्वतंत्र हुआ। लेकिन क्या सत्ता जनता पर राज करने की लालसा से स्वतंत्र हो सकती है? जनता पर राज करना ही सत्ताधीशों का ध्येय रहा है। जनता को वोट बैंक मानकर, उनको फिर से अपनी सत्ता के लिए झोंकना और चलाना ही राजनीति का नया तरीका हो गया है। ।।
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