काबुल से दिल्ली पहुंचा सिखों का जत्था, अपनों से मिलने पर आंखें हुईं नम, नहीं छिपा सके गम

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अफगानिस्तान के मौजूदा हालात से खौफजदा 21 सिखों का दूसरा जत्था बृहस्पतिवार दोपहर दिल्ली पहुंचा। आईजीआई एयरपोर्ट पर आखें उनकी नम थीं। अपने रिश्तेदारों को देखकर उनकी नजरें तो चमकीं और चेहरे पर हल्की मुस्कान भी आई, लेकिन पलायन का दर्द नहीं छिपा सके। अपनी मातृभमि, लाखों की जायदाद छोड़कर भारत की जमीं पर पहुंचने पर वह खुद को महफूज महसूस कर रहे थे। फिर भी, अनिश्चित भविष्य की फिक्र उन्हें सता रही थी।

दरअसल, पिछले महीने काबुल के एक गुरुद्वारे के ग्रंथी की हत्या और सिख समुदाय को मिल रही प्रताड़ना की सूचनाओं के बीच शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) ने अपने खर्च पर सिखों को भारत लाने की कोशिश की। केंद्र सरकार की ओर से प्रभावितों को सुरक्षित लाने के लिए ई-वीजा का प्रावधान किया है। पिछले दिनों 11 सिखों का जत्था दिल्ली पहुंचा था। 21 सदस्यों का दूसरा समूह बृहस्पतिवार दिल्ली पहुंचा। वहीं, सिख परिवारों के 60 से अधिक सदस्य अभी ई-वीजा मिलने के इंतजार में हैं।

दिल्ली पहुंचे लोगों का कहना है कि अब जुल्म बर्दाश्त नहीं होता। अलगाववादी गुटों के बीच फंसे सिख समुदाय के लिए चैन की नींद तो दूर, खुली हवा में सांस लेने का भी मौका कई महीनों से नहीं मिला। तालिबान के कब्जे के बाद से लगातार अफगानिस्तान में सिखों के साथ हो रहे बर्ताव से आहत लोग इतने खौफजदा हैं कि जुबां से हकीकत निकलने में काफी वक्त लग रहा था।

अफगानिस्तान में रहने लायक माहौल नहीं : राजिंदर सिंह ने बताया कि फिलहाल उनका कोई नहीं बचा है। काबुल में अभी भी परिवार के सात सदस्य फंसे हुए हैं। अब यही दुआ कि सभी सुरक्षित आ जाएं, क्योंकि वहां के हालात अब रहने लायक नहीं है। हालात चाहे कितने भी क्यों न बदल जाए, वहां नहीं लौटेंगे। काबुल के एक गुरुद्वारा परिसर में हुए हमले में एक सिख समेत दो लोगों की मौत हो गई थी। वहां से आए सिखों ने कहा कि वहां कभी भी हमला कर दिया जाता है। वो नहीं चाहते हैं कि एक भी सिख रहे।


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