द्रौपदी मुर्मू का शपथग्रहण और लोकतंत्र का नया अध्याय

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आज नवनिर्वाचित राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू देश के 15वें राष्ट्रपति के रूप में संसद के सेंट्रल हॉल में शपथ ग्रहण करेंगी। हाल ही में संपन्न हुए राष्ट्रपति के निर्वाचन की प्रक्रिया एक मील का पत्थर है। भारत एक जीवंत लोकतंत्र है और इसमें क्षेत्रीय, भाषायी और धार्मिक विविधता है। यह भारतीय संविधान की दूरदृष्टि को ही दर्शाता है कि आजादी के 75वें साल में भी देश की सांविधानिक एवं लोकतांत्रिक प्रक्रिया निरंतर उस अंतिम व्यक्ति/महिला के कल्याण को अपनी दृष्टि में रखती है, जिसके हित के लिए संविधान बना। श्रीमती द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति चुना जाना इस दृष्टिकोण से एक अभूतपूर्व लोकतांत्रिक कामयाबी है। वह एक ऐसे समाज और परिवार से ताल्लुक रखती हैं, जिसकी पृष्ठभूमि श्रमकर्मी की है। यह शायद भारत में ही संभव है कि ऐसे वंचित सामाजिक व आर्थिक पृष्ठभूमि की महिला भी शीर्ष पद पर पहुंच सकीं।

आज से भारत के लोकतांत्रिक इतिहास का नया अध्याय शुरू होता है। निवर्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद दलित समुदाय से ताल्लुक रखते हैं और उनका लालन-पालन भी एक कच्चे घर में हुआ, जिसकी छत से पानी टपकता था। वह वकालत की पढ़ाई के उपरांत हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता बने। फिर वह राज्यसभा सदस्य बने और बिहार के राज्यपाल भी। लोकसभा के सेंट्रल हॉल में विदाई भाषण में उन्होंने अपनी इस लंबी जीवन यात्रा का तो वर्णन किया ही, सरकार की उन कल्याणकारी योजनाओं का भी विस्तृत ब्योरा दिया, जिसमें अंतिम व्यक्ति के रोजमर्रा के जीवन की कठिनाइयों को हल करने की बातें सोची गई हैं। हर घर नल से पानी पहुंचाने का सपना, स्वच्छ भारत का सपना, और लड़कियों के पढ़ने और आगे बढ़ने की बात पर उन्होंने विशेष बल दिया।


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