तप रहे हैं यूरोप-अमेरिका, कई देशों में हालात खराब

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अगस्त, 2009 की बात है। मैं पेरिस में थी। वहां सुबह जब घूमने निकले, तो बहुत गर्मी महसूस हुई, पर लगा कि यह मेरा भ्रम है। मगर भ्रम नहीं था। रास्ते में कहीं पानी न मिलना, बेइंतहा गर्मी और ऊपर से इतनी तेज धूप में दूर तक पैदल चलना। हालत यह हुई कि एफिल टावर पर चढ़ने की हिम्मत नहीं हुई। एक छोटे से पेड़ की छाया में खड़े होकर दूर से बस उसे निहारती रही और हाथ में पकड़े अखबार को पंखे की तरह डुलाती रही। सीन नदी में जब क्रूज पर गए, तब भी गर्मी से निजात नहीं मिली। यों लगता था, जैसे गर्म हवा और तपते सूरज ने बदला लेने की ठान ली है।

शाम को थके-मांदे जब लौटे, तो सर्विस अपार्टमेंट के अंदर और भी बुरा हाल हुआ। चारों तरफ शीशे ही शीशे, न कोई पंखा न कुछ और, जिससे राहत मिल सके। दम घुटने लगा। बच्चों ने इसे महसूस किया और बाजार की तरफ पंखा खरीदने दौड़े, जो बड़ी मुश्किल से मिला। उन दिनों तक भी पंखे और एसी की जरूरत इतनी महसूस नहीं होती थी, इसलिए बाजार में नहीं दिखते थे। आज पंखे और एसी की उन देशों में खूब मांग है और बाजार इनसे भरे हुए हैं। उन देशों में घरों के भीतर अधिक गर्मी का भी कारण है। वहां घर ऐसे बनाए जाते हैं, जो सर्दी से बचाने के लिए धूप को सोखते हैं, ताकि घर गर्म रह सकें। लेकिन अब तो स्थिति उलट है। वर्ष 2009 में फ्रांस में तापमान 35 डिग्री था, जो कि एक रिकॉर्ड था। लेकिन पिछले दिनों वहां का तापमान 42 डिग्री रहा है। ब्रिटेन में भी हालत बहुत खराब है। लोगों को सलाह दी जा रही है कि जब तक जरूरी न हो, घर से बाहर न निकलें। अगर निकलना जरूरी ही हो, तो पानी साथ लेकर चलें। पानी की बात पर यह भी याद आता है कि वर्ष 2008 में म्यूनिख एअरपोर्ट पर मैं पानी ढूंढती ही रह गई थी। तब पानी की कमी एक शीतलपेय से पूरी की थी। उन देशों में पानी के मुकाबले शराब मिलना आसान है।


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