पत्नी ने पति को रखा धोखे , हाईकोर्ट में हुई सुनवाई

feature-top
बिलासपुर हाई कोर्ट ने अपने महत्वपूर्ण आदेश में कहा है कि अगर पत्नी द्वारा धोखे में रखकर दोबारा विवाह रचा लिया है तो पुन: वैवाहिक संबंध स्थापित करने का कोई औचित्य नहीं रह जाता है। कोर्ट ने पति की याचिका को स्वीकार करते हुए विवाह विच्छेद की डिक्री का आदेश जारी कर दिया है। साथ ही हाई कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को रद कर दिया है। मामला गरियाबंद निवासी पति द्वारा याचिका पेश कर कहा है कि वर्ष 2001 में उनकी शादी जिले के ही एक गांव में हुई थी। शादी के बाद मायके व ससुराल पक्ष में लगातार गुमनाम पत्र आने लगा। पत्र में पत्नी के पूर्व विवाहित जीवन को लेकर पर्दाफाश किया गया था। इसे लेकर मायके और ससुराल दोनों पक्षों में विवाद की स्थिति बनने लगी। उन्होंने पत्नी को मायके छोड़ दिया। इसके बाद उन्होंने दोबारा दांपत्य जीवन निर्वहन करने निचली अदालत में वाद दायर किया था। मामले की सुनवाई के बाद निचली अदालत ने उसी पत्नी को स्वीकार कर दोबारा दांपत्य जीवन स्थापित करने का आदेश जारी किया। निचली अदालत के फैसले को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट में अपील की थी। याचिका में उन्होंने बताया है कि वर्ष 2001 में विवाह के बाद से ही मायके और ससुराल पक्ष में गुमनाम पत्र आने लगा था। पत्र में यह बताया गया था कि उनकी पत्नी की पूर्व में ही शादी हो चुकी है। उसने धर्म परिवर्तन कर एक मुस्लिम युवक के साथ निकाह कर लिया था। दोनों के बीच विवाद की स्थिति बनने पर वह वापस मायके आ गई थी। जब उनसे वैवाहिक संबंध बने तो पूर्व के विवाह संबंध को उन्होंने छिपा दिया। धोखे में रखकर विवाह कर लिया। मामले की सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने हिंदू विवाह अधिनियम 1954 की धारा 13 के दिए गए प्रविधानों का उल्लेख करते हुए कहा है कि अगर पत्नी के पुनर्विवाह का स्पष्ट साक्ष्य मिल जाता है तो दोबारा वैवाहिक जीवन स्थापित करने का कोई औचित्य नहीं रह जाता है। इस व्याख्या के साथ हाई कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को रद करते हुए विवाह विच्छेद की डिक्री स्वतंत्र कर दिया है। इसके साथ ही हाई कोर्ट ने याचिका को निराकृत कर दिया है।
feature-top