शतरंज : 136 साल और 16 चेम्पियन
लेखक - संजय दुबे
शतरंज के खेल को स्थायित्व के साथ आक्रमण और सुरक्षा का सम्मिलित खेल माना जाता है। इस खेल कोविश्व स्तर पर खेलने वालों को ज्यादातर अकेला और दिमागी जुगत लगाते देखा जाता है। वे 64 खानों में अपने 16 मोहरों के साथ प्रतिद्वंद्वी के राजा को आत्म समर्पण कराने के चाल में उलझे होते है।
इस खेल के विश्व चेम्पियन बनने का आधिकारिक वर्ष 1886 रहा तब से लेकर बीते 136 साल में केवल 16 खिलाड़ी ही चेम्पियन बन पाये है। इस फेरहिस्त में भारत के विश्वनाथ आनंद भी है जो गौरव की बात है।
शतरंज खेल में अविभाजित सोवियत संघ का वर्चस्व रहा है। उनके खिलाड़ी मिखाइल बोतिनिविक, वेश्ले सेमेंलसकोव, मिखाइल तल, ट्रिगन पेट्रोसियन,अनातोली कर्पोव , गैरी कास्प्रोव, ब्लादिमीर क्रेमेनिक ने 1948 से1966 और1975 से 2006 तक विश्व चेम्पियनशिप अपने पास रखा। गैरी कास्प्रोव ने 6 बार चेम्पियनशिप जीत कर जर्मनी के इमेनुअल लस्कर के बराबरी में है। यदि महाबलीपुरम में चल रहे विश्व चेम्पियनशिप में नार्वे के मैग्नस कार्लसन जीतते है तो वे भी इस उपलब्धि के बराबरी में खड़े हो जाएंगे।
1886 में पहले विश्व चेम्पियन अमेरिका के विलियम स्टेनिज़ बने जिन्होंने पोलैंड के जुकेरहार्ट को हराया था। विलियम को विश्व मे शतरंज खेल में संभावना और सामर्थ्य का सबसे बढ़िया सम्मिश्रण माना जाता हैं। विलियम 4 बार (1886-1892)चेम्पियन रहे। जर्मनी के इमेनुअल लस्केर ने आने वाले 18 साल में 6 बार (1892 -1910)चेम्पियनशिप जीत कर जो रिकार्ड बनाया वह आज तक कायम है। 1910 से 1920 तक पहले विश्व युद्ध के कारण स्पर्धा प्रभावित रही। 1921 में क्यूबा के केम्पबेल जिन्हे शतरंज के अंतिम समय मे खेले जाने वाले end game का मास्टर माना जाता था वे नए चेम्पियन बने। 1927 से1934 और 1937 की चेम्पियनशिप फ्रांस के अलेक्जेंडर एकलिने के पास रही। अलेक्जेंडर पहले आक्रामक खिलाड़ी थे जिन्होंने आक्रमण ही सुरक्षा का बेहतर उपाय सिद्धान्त को शतरंज में लेकर आये। उनके चार बार के विजेता होने में 1935 में नीदरलैंड के मार्क्स यूए बाधा बन नये चेम्पियन बने थे।
1935 से 1948 तक दूसरे विश्व युद्ध के तनाव ने शतरंज को बाधित किया। इसके बाद सोवियत संघ के वर्चस्व की कहानी शुरू होती है। कर्पोव, कास्प्रोव और क्रेमनिक( आने वाले सालो के विश्व चेम्पियन) के कोच मिखाइल बेतिनिविक 1948 से लेकर 1961(1957 को छोड़कर) तक 5 बार चेम्पियन बने। 1957 में उन्हें उनके ही देश के वेश्ले सेमेंलेकोव ने हरा दिया था। 1960 में सोवियत संघ के ही मिखाइल तल सबसे कम उम्र (23 साल ) के चेम्पियन बने। 1963 और 1966 में रक्षात्मक खेल खेलने वाले सोवियत संघ के ही ट्रिगन पेट्रोसिया चेम्पियन बने। 1966 में चेकोस्लोवाकिया के बोरिस स्पास्की नए चेम्पियन बने और 1969 में चेम्पियनशिप अपने पास रखी।
1972 का साल शतरंज में नई बयार लेकर आया और धूमकेतु की तरह अमेरिका के बॉबी फिशर का आगमन हुआ। शतरंज को 64 खानों से निकाल कर अमेरिका के इस खिलाड़ी को जो प्रचार मिला वैसा किसी शतरंज खिलाड़ी को नही मिला है। 1975 से 2006 तक एक बार फिर सोवियत संघ/ रूस के खिलाड़ी अनातोली कर्पोव, गैरी कास्प्रोव और ब्लादिमीर क्रेमनकोव का रहा। इन तीनो खिलाड़ियों ने12 टाइटल अपने नाम किये। कास्प्रोव ने 6, कार्पोव और क्रैमनिक ने 3-3 बार चेम्पियनशिप जीती। 2008 से 2012 तक स्वर्णिम युग भारत के विश्वनाथ आनंद का रहा। 2012 से अब तक नार्वे के मैग्नस कार्लसन का एकाधिकार बना हुआ है। वे महाबलीपुरम में चल रहे 44 वी चेम्पियनशिप में सबसे तगड़े दावेदार है जो छठवीं बार जीत दर्ज कर सर्वकालिक खिलाड़ियों की श्रेणी में। शामिल होने का दावा करेंगे।
शतरंज खेल में दावेदार बहुत होते है लेकिन चेम्पियन एक ही होता है। आश्चर्य है कि 136 साल में केवल 16 खिलाड़ी शीर्ष पर रहे याने दिमागी तौर पर स्थायित्व का दबदबा ही तो है।
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