थोड़ा रफू करके देखिए

लेखक - संजय दुबे

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जिंदगी ही तो है-गुलज़ार

18 अगस्त जेहन में था लेकिन पता नहीं क्या हुआ कि तारीख तो आई पर जेहन में नहीं रहा।आज सुबह से याद कर रहा था कि एक दो दिन में क्या गुजर गया, जिसे भले ही गुजरना तो था लेकिन जेहन से होकर गुजरना था। आज ट्विटर पर देखा तो समझ मे आया कि जेहन से गुलज़ार उतर गए थे।18 अगस्त उनका जन्मदिन था। दो दिन पहले 88 का आंकड़ा छू कर आगे बढ़ गए है गुलज़ार।

 फिल्मों में गायक गायिकाओं द्वारा होठ हिलाकर गाये जाने गीतों के रचनाकारों को गीतकार का शीर्षक दिया गया है। ढेर सारी फिल्में कमजोर कथानक के केवल गीतों के कारण सफल हुए है।सिनेमा की व्यवसायिकता अपने चरम पर पहुँची तो सिनेमा की समझ न रखने वालों ने 6 अच्छे गाने के बीच कथानक का फिलर रख कर फिल्म बनाने की जुर्रत भी की। सिनेमाई गानों की एक खासियत ये भी रही कि ये संवाद पर हमेशा भारी पड़े।लोगो को गाने याद रहते है वे कही भी कभी भी एकांत में गुनगुनाने का सामर्थ्य रखते है।

 गुलज़ार 1963 में "मोरा गोरा रंग लईले मोहे श्याम रंग दईदे" के माध्यम से बंदिनी फिल्म से रूबरू हुए थे। तब से लेकर अबतक के नायक नायिकाओं के लिए गीत लिखते आ रहे है। उनके गीत संरचना में साधारण शब्दो की जगह सार्थक शब्दो का चयन होता है प्रकृति का जुड़ाव उनके गीतों की विविधता है। मौसम, पानी से उनका जुड़ाव गीतों में झलकता है। दिल ढूंढता है फिर वही फुर्सत के रात दिन सुन कर लग सकता है कि कितने आसानी से सारे मौसम को कुछ पंक्तियों मे समेट दिया गया है। आंधी, मौसम, परिचय, आनंद,गोलमाल लेकिन, खामोशी,खुशबू जैसे फिल्मों में गुलज़ार के शब्दों का जादू देखा जा सकता है। फिल्मों के कथानक के हिसाब से गीत संरचना कठिन काम होता है लेकिन गुलज़ार इस काम मे माहिर रहे है। आनंद फिल्म का गाना "मैंने तेरे लिए ही सात रंग के सपने चुने," मेरे दिल के करीब का गाना है। इसे ध्यान से सुने तो लगेगा कि कम उम्र की जिंदगी जीने वाले में कितना आशावाद होता है। गुलज़ार ने ऐसे ही अमर गाने लिखने का माद्दा रखा है।

 जितेंद्र, याद होगा आपको,। एक दौर में जंपिंग जैक को लगा कि वे समय के साथ नही चल पा रहे है और उनके टाइप्ड अभिनय के चलते वे खारिज़ हो सकते है ऐसे में उन्होंने गुलज़ार की शरण ली। गुलज़ार ने उन्हें अपना पायजामा कुर्ता ओर मोटे फ्रेम का चश्मा पहना कर "परिचय" बदल दिया। 

हिंदी फिल्मी गानों में अंग्रेजी शब्दो का चलन अब तो होने लगा था लेकिन गुलज़ार ने 74 साल की उम्र में बंटी और बबली के गाने कजरारे कजरारे तेरे काले काले नैना लिखा तो एक पंक्ति ये भी रही- आंखे भी कमाल करती है, पर्सनल(personal) से सवाल करती है। लिखकर सामयिक होने का अहसास दिलाया।

शब्दो के धनी गुलज़ार साहब से शब्द चयन करने की शिक्षा लेकर हम आसान शब्दो का सार्थक चयन कर सकते है। दो दिन पहले 88 साल के गुलज़ार साहब को दो दिन बाद जन्मदिन की शुभकामनाएं। वे लिखते रहे, हम सुनते रहे आखिर दिल तो फुर्सत के रात दिनों में कोई गाना सुनना तो चाहता ही है


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