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डामर घोटाला:4 अफसरों के खिलाफ एसीबी को जांच की दी गई अनुमति
प्रदेश में हुए बहुचर्चित डामर घोटाले के मामले में लोक निर्माण विभाग ने एडीबी में पदस्थ रहे चार अफसरों और कंसल्टेंसी फर्म के खिलाफ जांच की अनुमति एसीबी को दे दी है। जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान राज्य शासन की तरफ से मामले में पैरवी कर रहे शासकीय अधिवक्ता ने सोमवार को सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट में यह जानकारी दी।
जनहित याचिका पर दिए गए नोटिस के बाद एडीबी के परियोजना निदेशक ने तीन अधिकारियों की समिति बनाई थी। समिति को एक माह में जांच कर प्रतिवेदन प्रस्तुत करने को कहा गया था। रायपुर निवासी वीरेंद्र पांडेय ने प्रदेश में डामर घोटाले को लेकर याचिका प्रस्तुत की थी। वर्ष 2019 में उनकी याचिका राज्य शासन के लिखित आश्वासन के बाद निराकृत कर दी गई थी, लेकिन इस मामले में दोषियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की गई।
इसके बाद पाण्डेय ने अधिवक्ता हर्षवर्धन परगनिहा और रजत अग्रवाल के जरिए फिर से याचिका प्रस्तुत की, इसमें बताया गया है की प्रदेश भर की 21 सड़कों के निर्माण के लिए एडीबी से 1200 करोड़ रुपए का कर्ज लिया गया था। इसमें से 200 करोड़ रुपए से अधिक का घोटाला किया गया है। एक ही बिल लगाकर कई सड़कों का निर्माण करने की जानकारी दी गई।
जानकारी जुटाने पर पता चला कि ठेकेदारों से मिलीभगत कर अधिकारियों ने जमकर भ्रष्टाचार किया है। मामले में दोषियों के खिलाफ़ कार्रवाई की मांग की गई थी। याचिका पर सोमवार को सुनवाई के दौरान राज्य शासन की तरफ से बताया गया कि मामले में जांच के बाद एडीबी में पदस्थ रहे पीडब्ल्यूडी के तीन अफसर दोषी पाए गए हैं, उनके खिलाफ कार्रवाई के लिए राज्य शासन से अनुमति मिल गई है। जल्द ही एफआईआर दर्ज करवाई जाएगी।
ये अफसर पाए गए जिम्मेदार लोक निर्माण विभाग के अवर सचिव केके भूआर्य ने जांच प्रतिवेदन के आधार पर एसीबी/ ईओडब्ल्यू के एसपी को मार्च 2022 में पत्र लिखा था, इसमें बेमेतरा से मुंगेली समेत एडीबी की राशि से बनाई गई 17 सड़कों में गड़बड़ी के लिए तीन अफसर और कंसल्टेंट कंपनी को जिम्मेदार पाते हुए उनके खिलाफ जांच की अनुमति दी थी। पत्र के अनुसार एडीबी के प्रोजेक्ट में गड़बड़ी के लिए तत्कालीन परियोजना संचालक एससी त्रिवेदी, आरवाय सिद्दिकी, जेएम लुलु और कार्यक्षेत्र के तत्कालीन कार्यपालन अभियंता (नोडल अधिकारी) एनके जयंत और कंसल्टेंसी फर्म रेनॉरडेट एसए को जिम्मेदार पाया गया था।
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