दिल की बीमारी का 10 साल पहले ही चल जाएगा पता, IIPH के शोधार्थियों ने पाए 85 फीसदी सटीक परिणाम

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यदि भविष्य में होने वाली दिल की बीमारी का पहले ही पता चल जाए तो उपचार में मदद मिल सकती है। जल्द ही ऐसा संभव हो सकता है। दरअसल, गुजरात के गांधीनगर के शोधार्थी एक ऐसी गैर प्रयोगशाला आधारित जांच प्रक्रिया पर काम कर रहे हैं, जो 10 वर्ष पूर्व ही दिल की बीमारी के जोखिम का पता लगा सकेगी। इसके लिए एक गैर प्रयोगशाला आधारित स्क्रीनिंग टूल तैयार किया जा रहा है। पहले चरण में इसके परिणाम 85 फीसदी सटीक मिले हैं।

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक हेल्थ (आईआईपीएच) के शोधार्थियों ने केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अधीन स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग से अनुदान लेकर यह अध्ययन किया है। इसमें शोधार्थियों ने फ्रामिंघम जोखिम मूल्यांकन उपकरण तैयार किया है। इसे अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और यूरोपीय देशों में मंजूरी मिली है, लेकिन भारत में अभी तक ऐसा नहीं है। 

पहले चरण के परिणाम उत्साहजनक जैव चिकित्सा विशेषज्ञ डॉ. कोमल शाह ने कहा, हम जब भी दिल की बीमारियों की बात करते हैं तो लोग सबसे पहले कोलेस्ट्रॉल पर ध्यान देते हैं, जबकि कोलेस्ट्रॉल हृदय संबंधी जोखिमों का एक बड़ा संकेत नहीं है। हमने अध्ययन में गैर प्रयोगशाला आधारित फ्रामिंघम जोखिम मूल्यांकन उपकरण तैयार किया है, जिसके पहले चरण के परिणाम काफी उत्साहजनक हैं।

2100 लोगों पर किया अध्ययन डॉ. शाह के मुताबिक, गुजरात के करीब 2,100 लोगों पर अध्ययन किया गया। इसमें बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई), आयु, लिंग, रक्तचाप, धूम्रपान और मधुमेह जैसे कारकों का उपयोग करते हुए इन लोगों की जांच की गई।

इसलिए है जरूरत डॉ. कोमल शाह ने बताया कि भारत जैसे सीमित संसाधन वाले देश में दिल से जुड़ी बीमारियों के मामले काफी तेजी से बढ़ रहे हैं। इसके चलते मरीजों में मृत्युदर भी बढ़ी है और हार्ट अटैक के मामलों में भी बढ़ोतरी हुई है। इसलिए मरीजों की बड़े पैमाने पर निगरानी बहुत जरूरी है। उन्होंने बताया कि इस निगरानी के लिए एक विकल्प की तलाश की जा रही है। हम ऐसा उपकरण बनाने का प्रयास कर रहे हैं, जिसके लिए किसी प्रयोगशाला या स्वास्थ्य कर्मचारियों को प्रशिक्षित करने की जरूरत न हो।


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