स्वामी स्वरूपानंद जी और आध्यात्मिक यात्रा

लेखक - संजय दुबे

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पिछले साल अगस्त के आखिर दिनों में यू ही विचार आया कि जोतेश्वर आश्रम (गाडरवारा) जिला नरसिंहपुर चला जाये। आनन फानन सड़क मार्ग से कुछ ही घण्टो में यात्रा को गति मिल गयी। रायपुर से सिमगा बेमेतरा कवर्धा होते हुए जब यात्रा आगे बढ़ी तो कान्हा नेशनल पार्क के पहले मुक्की गेट के पास तेज़ी से बारिश होने लगी। रात तक हम लोग भेड़ाघाट के एमपी टूरिज्म के होटल में रुके । यात्रा का यह पहला पड़ाव था। दूसरे दिन हम लोग गाडरवारा के लिए रवाना हो गए।नरसिंहपुर से बीस किलोमीटर पहले घने सुरम्य जंगल के बीच जोतेश्वर आश्रम में प्रवेश किये तो आसमान में बदली की परत चढ़ी हुई थी। त्रिपुर सुंदरी के भव्य मंदिर में दर्शन करने के बाद यही के भोजनालय में स्वादिष्ट भोजन करने के बाद हम लोग स्वामी स्वरूपानंद जी के आश्रम की तरफ पैदल बढ़ने लगे। रास्ते मे उनके सालो के तपस्या के लिए उपयोग की गई शिला और रहने की गुफा के अलावा वो पेड़ भी देखे जिसमे वे रात्रि को कमर में कपड़ा बांध कर नींद भी सो लेते थे, देखने का सौभाग्य मिला। 

हम लोग आश्रम में प्रवेश कर चुके थे। स्वरूपानंद जी के अधीनस्थ ने बताया कि शंकराचार्य जी के भेंट का समय शाम को 5 बजे के बाद है। हम लोग 2 घण्टे तक अन्य संत समागम के सानिध्य में गुजारे। पहले तल से आवाज़ आयी कि गुरु जी से भेंट करने वाले प्रथम तल में आ जाये। लगभग 300 -350 लोगो की भीड़ तेज़ी से दर्शन के लिए लपके। देश दुनियां से लोग मिलने आये थे। 

एक विशाल पलंग में जगतगुरु स्वरूपानंद जी विराजमान थे। 98 साल पूरे होने को थे। उनकी काया कमजोर थी लेकिन मस्तिष्क सजग था। सभी को बारी बारी आशीर्वाद देते जा रहे थे। उनके शिष्य लोगो को कोरोना के कारण दूर से ही मिलने की सलाह दे रहे थे। हम लोगो की बारी आई तो दुनियां में सनातन धर्म के रक्षक और बद्रिकाश्रम और शारदा पीठ के जगतगुरू स्वामी स्वरूपानंद जी के चरण स्पर्श का संयोग मिल गया।वह क्षण अपने आप मे अद्भुत क्षण था। भारी भरकम आवाज़ में आशीर्वचन सुनने को मिला। उनके ललाट पर तेज़ सुशोभित था, सफेद दाढ़ी के साथ मस्तक पर तिलक की आभा निराली थी। जीवन मे उस समय मिला महज कुछ मिनट का समय मस्तिष्क में सुरक्षित है। उनके निधन के समाचार सुनते ही एक वर्ष पुरानी यात्रा आंखों के सामने घूम गयी। पिछले कुछ समय से फिर से यात्रा की योजना बन बिगड़ रही थी क्योंकि ये समाचार मिल रहा था कि स्वरूपानंद जी असवस्थ है जिसके कारण उनके शिष्यों को छोड़कर अन्य को अनुमति नही है अंततः हमारी यात्रा तो न हो सकी लेकिन स्वरूपानंद जी अनंत यात्रा में चले गए।

विनम्र श्रद्धांजलि


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