Gaalib Movie Review: बंदूक पर भारी कलम का सच्चा किस्सा

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समाज में आम तौर पर ऐसी धारणा रहती है कि डॉक्टर का बेटा डॉक्टर और इंजीनियर का बेटा इंजीनियर ही बनेगा। ऐसा प्रायः हर क्षेत्र में देखने को मिलता है, लेकिन ऐसा जरूरी नहीं है। संसद हमले के दोषी अफजल गुरु के बेटे गालिब से यह उम्मीद कोई नहीं कर सकता था कि वह दसवीं की परीक्षा को टॉप करके देश भर में नाम कमाएगा। पिता अफजल गुरु को फांसी होने के बाद घाटी में सक्रिय आतंकी संगठनों ने उसे पिता की मौत का बदला लेने के लिए बहुत उकसाया। लेकिन गालिब आतंकवाद का रास्ता ना चुनकर शिक्षा हासिल करना चाहता है और उसे इनाम भी उसी जज के हाथों मिलता है जिसने उसके पिता को फांसी की सजा सुनाई।

मां ने बचा लिया आतंकवादी बनने से फिल्म 'गालिब' की कहानी आंशिक रूप से अफजल गुरु के बेटे गालिब और उसकी मां के रिश्तों पर आधारित हैं। अफजल गुरु के फांसी के बाद वह किन हालात में अपने बेटे गालिब को कश्मीर के हालातों के बीच एक अच्छा इंसान बनाती है, उसके लिए क्या क्या संघर्ष करती हैं ये कहानी उसी पर आधारित है। यह फिल्म कश्मीर घाटी की आतंकवाद की तपिश के साथ एक ऐसे हिंदुस्तान की बात करती है जो कश्मीर के अलावा भी और बहुत खूबसूरत है। गालिब को आतंकवादी बनाने का बहुत प्रयास किया गया लेकिन उनकी मां उसे आतंकवादी बनने से बचा लेती है और कश्मीर से दूर इलाहाबाद पढ़ने के लिए भेज देती है। 

पिता से हटकर मिली पहचान अफजल गुरु खुद डॉक्टर था लेकिन उसने आतंकवाद का रास्ता चुना। इस बात का उसे पछतावा भी बहुत था। अफजल चाहता था कि उसका बेटा डॉक्टर बने। अपने पिता के सपने को पूरा करने के लिए वह डॉक्टर बनना चाहता है। नियति का खेल देखिए जब इलाहाबाद से दसवीं की पढ़ाई पूरी करके आता है और जब टॉप करता है तो उसी जज के हाथों उसे सम्मान मिलता है जिस जज ने अफजल गुरु को फांसी की सजा सुनाई थी। गालिब को सम्मानित करते हुए जज कहते हैं कि जरूरी नहीं कि बेटे की पहचान उसके बाप की वजह से ही हो। पिता ने जो कर्म किए, उसकी सजा उसे मिल गई। बेटे ने जो काम किया, उसका उसे पुरस्कार मिला।

दीपिका ने दिखाया दम फिल्म ‘बाला’ के बाद दीपिका चिखलिया की फिल्म ‘गालिब’ प्रदर्शित हो रही है। हालांकि इस फिल्म की शूटिंग उन्होंने बाला से पहले ही कर ली थी। लेकिन, कोरोना के चलते फिल्म रिलीज नही हो पाई थी। गालिब का पूरा दारोमदार दीपिका चिखलिया के ही कंधे पर है। उन्होंने मां की भूमिका को बहुत ही बेहतरीन तरीके से निभाया है। रंगमंच के काबिल कलाकार अनिल रस्तोगी ने फिल्म में ससुर का प्रभावशाली किरदार निभाया है। फिल्म का सबसे मजबूत पक्ष है फिल्म की कहानी जिसे धीरज मिश्रा ने लिखा है। हालांकि, फिल्म कहीं न कहीं सुस्त पड़ती है और यहां फिल्म बोझिल होने लगती है। फिल्म की सिनेमैटोग्राफी अच्छी है।


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