खेल खेले तो खेल भावना से खेले
लेखक - संजय दुबे
खेल का मैदान युद्व का मैदान नहीं होता है जहां केवल औऱ केवल जीत की उम्मीद लेकर उतरा जाता है।जहां जीतने के लिए कौरव जैसी सेना के महारथी भी युद्ध के बनाये नियम को तोड़ कर छल प्रपंच से जीतने के लिए कोशिश करते है खेल को अतीत में कितनी महत्ता दी जाती थी इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि जब यूनान में ओलम्पिक खेल हुआ करते थे तब के अवधि में युद्ध रोक दिए जाते थे।खिलाड़ियों के लिये, दर्शकों के लिये सैना रास्ता बनाती थी
नए दौर में ओलम्पिक खेल शुरू हुए तो आदर्श वाक्य के रूप में दो बातें आगे आई1, खेल में जीतने हारने से ऊपर है खेल में भाग लेना 2 जीतो तो गर्व नही हारो तो शर्म नहीं। खेल को खेल भावना के साथ अंतरास्ट्रीय सद्भावना का आधार माना गया।
कल भारत औऱ इंग्लैंड की महिलाओं के बीच एकदिवसीय मैच श्रंखला का तीसरा मैच खेला गया। भारतीय महिला क्रिकेट टीम पहले दो मैच जीतकर श्रंखला जीत चुकी थी। तीसरा मैच हार भी जाती तो कोई फर्क नही पड़ता। तीसरा मैच रोमांचक दौर पर था। 7 ओवर में इंग्लैंड को 16 रन की जरूरत थी एक विकेट शेष था। अंतिम जोड़ी के रूप में चार्ली डीन (47) और फ्रेया डेविस(10) रन पर खेल रही थी। दीप्ति शर्मा ने अपने आठवें ओवर की 3री बॉल में चार्ली के बॉलर एन्ड के क्रीज़ से बाल डिलेवर होने से पहले बाहर निकल जाने के कारण एक्शन पूरा कर बेल्स निकाल दिया। नियम से तो चार्ली आउट होने की हकदार थी लेकिन इतने रोमांचक मैच का अंत बुरा हुआ। दीप्ति ने समझ लिया था कि भारत के क्रीम बॉलर्स झूलन गोस्वामी, रेणुका ठाकुर और राजेश्वरी गायकवाड़ अपना कोटा पूरा कर चुकी थी। केवल हेमलता और पूजा सहित कप्तान हरमनप्रीत ही बॉलिंग कर सकते थे। जिस ढंग से चार्ली खेल रही थी उससे हार का खतरा तो था लेकिन 16 रन बनाना था आखिरी विकेट थी तो दीप्ति को खेल भावना दिखाते हुए चार्ली को वापस बुलाना था। इसके बाद भी इंग्लैंड के बेटर्स न मानते तो फिर ये तरीका अपनाया जा सकता था। दीप्ति जान रही थी कि अंतिम विकेट के लिए खेल रहे बेटर्स शायद मौका न दे सो रन आउट कर दिया। मुझे लगता है कि भारतीय महिला टीम को जोखिम उठाना था। कप्तान हरमनप्रीत को चार्ली को वापस बुलाना था और आउट करने की कोशिश करना था। ऐसा नही हुआ ,भले ही हरमन प्रीत की टीम ने 3-0 से सीरीज़ जीत लिया लेकिन क्रिकेट के सच्चे खेल प्रेमियों का दिल हार गई। ये जीत भारतीय महिला क्रिकेट टीम के बॉलर्स और फील्डर्स के दमखम पर प्रश्नचिन्ह बन गया जो एक विकेट ईमानदारी से ले सकते थे, न भी लेते ,हार भी जाते तो लगता कि टीम वही जीतती है जिसमे जीतने का इरादा होता है। ज्यादा से ज्यादा 2-1 से सीरीज़ जीतते लेकिन इस जीत में पूरी ईमानदारी की कसक रह गयी।खिलाड़ी जीते, खेल भावना हार गई
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