रंग बना बसंती भगत सिंह
लेखक - संजय दुबे
उपकार फिल्म पूर्व प्रधानमंत्री परम आदरणीय स्व.लाल बहादुर शास्त्री जी की परिकल्पना की वास्तविकता थी। जय जवान जय किसान के नारे को लेकर मनोजकुमार की इस फिल्म में इंदीवर का लिखा एक अमर गीत में " रंग बना बसंती भगतसिंह" का उल्लेख है। आज इसी भगतसिंह का जन्मदिन है। जिसे और सालो की तुलना में इस साल भव्यता के साथ मनाया जा रहा है। बीते सालों में अमर भगतसिंह के जन्मदिन पर समाचार पत्रों में विज्ञापन नहीं दिखते थे लेकिन इस साल पूरे पृष्ठ पर वे अवतरित हुए है।ये एक अच्छा प्रयास है।इसकी सराहना होनी चाहिए। भगतसिंह, आज के युग मे कैसे प्रासंगिक बन पाए इसके लिए समाज को प्रयास करना चाहिए।
मैंने भगतसिंह को बहुत पढ़ा है, जाना है,स्वतंत्रता के संग्राम में उनके जैसा आहुति देने वाला कोई नही है। जिस उम्र में युवक युवतियों के साथ प्रेम करने के सपने को हकीकत का जामा पहनाने के लिए गुलाब के फूल लिए फिरते है उस उम्र में भगतसिंह ने देश की बहरी अंग्रेज सरकार के कान में बात डालने के लिए राष्ट्रीय असेंबली में बम फोड़ने के बाद असहनीय शारीरिक अत्याचार सहने के बाद महज साल में फाँसी पर चढ़ गए। ऐसा नहीं था कि उनके शरीर को बंदी बना कर अंग्रेज बेफिक्र हो गए थे। भगतसिंह के लेखन से भी अंग्रेज भयभीत रहे। जेल में उन्होंने क्रांति के संबंध में दस हज़ार से अधिक पन्ने लिखे थे जिसे अंग्रेजो ने जला दिया अन्यथा आज के लोग क्रांति के सही संदर्भ को समझ पाते, क्योकि भगतसिंह खुद ही क्रांतिकारी थे और स्वयं के द्वारा इसका उपयोग कर इसकी शक्ति को पहचाने थे। अनुभव से लिखा और प्रयोग करने के बाद लिखने में बहुत फर्क होता है। एक अच्छे विचारक होने के साथ भगतसिंह योजनाकार भी थे, उनके भारत की परिकल्पना को किसी ने भी आगे बढ़ने नही दिया क्योंकि विचारों के फर्क के चलते भगतसिंह स्वीकार्य नही थे।
पिछले कुछ समय से देश के लोगो ने समझा कि भगतसिंह को उपेक्षित नही रखा जा सकता इसलिये वे आम लोगो के सामने लाये जा रहे है। इससे सिद्ध होता है कि व्यक्ति के कर्म को अनदेखा एक समय तक किया जा सकता है । भगतसिंह खुद कहते थे
मेरी हवाओ में रहेगी
ख्यालों की बिजली
यह मुश्त ए खाक है
फानी रहे रहे न रहे
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