हिंदी है हम
लेखक - संजय दुबे
मध्यप्रदेश की सरकार ने चिकित्सा शिक्षा के लिये गुलामी के प्रतीक अंग्रेजी भाषा के साथ साथ आज़ादी के बाद हिंदुस्तान के संविधान में राजभाषा का दर्जा प्राप्त हिंदी भाषा मे अध्धयन करने की शुरुवात की है।इसके पीछे मंशा हिंदी भाषी क्षेत्रो के निवासियों के समझने - समझाने वाली भाषा को प्रोत्साहित करना है। ये सराहनीय कार्य है जिसकी तारीफ होना चाहिए।
एक तरफ जब देश मे शिक्षा का माध्यम गुलामी की भाषा के रूप में अंग्रेजी को स्वीकार कर नवजात बच्चे को भी "come on" संबोधन के साथ उसके विकसित होने वाले मष्तिष्क में गुलामी की परत चढ़ाने की कोशिश सफल हो रही हो ऐसे में मध्यप्रदेश राज्य का एमबीबीएस शिक्षा को हिंदी के माध्यम से पढ़ाने का कार्य राष्ट्र भाषा के प्रति सम्मान माना जाना चाहिए।
देश मे हिंदी दिवस, हिंदी सप्ताह हिंदी पखवाड़ा मनाने का रिवाज है। बैंक में अक्सर ऐसे आयोजन होते रहते है लेकिन राष्ट्र भाषा आज भी अपना दर्जा हासिल नहीं कर पाई है। देश के अनेक हिस्सो में अपनी अपनी भाषाएं है अनेक राज्यो में हिंदी अस्वीकृत भी है। इस विरोध का मजा अंग्रेजी भाषा उठा रही है। यदि संविधान निर्माण के बाद सार्थक प्रयास किया जाता तो जैसे ब्रिटेन में अंग्रेजी, फ्रांस में फ्रेंच, चीन में चीनी, जर्मनी में जर्मन भाषा बोली लिखी जाती है वैसे ही हिंदुस्तान भी अपनी राष्ट्रभाषा पर नाज़ करता। लेकिन हम अफसोस करते गए। देश मे अंग्रेजी भाषा का ज्ञान का अर्थ अभिजात्य वर्ग का प्रतिनिधित्व करना माना गया। जिन्हें अंग्रेजी बोलना पढ़ना नही आता वे आज भी हीन भावना से ग्रसित रहते है। एक फिल्म आई थी बहुत पहले "रिक्शावाला" रणधीर कपूर और नीतू सिंह अभिनीत फिल्म में बेरोजगारी के चलते स्नातक उतीर्ण रणधीर कपूर जब नीतू सिंह के पिता को चार वाक्य अंग्रेजी के बघारता है तो नीतू सिंह के पिता का ये कहना होता है- "आदमी पढ़े लिखे हो"। इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि देश मे अंग्रेजी की औकात क्या है।
१९९१(1991) का वर्ष अंग्रेजी माध्यम से नर्सरी से आगे की पढ़ाई के लिए खुलने वाले निजी शालाओं का था।
तब के शहरी बच्चे अब न तो हिंदी पढ़ सकते है न लिख सकते है चूंकि घर के सदस्य बोलते आये है तो बस बोल सकते है। अंग्रेजी का महत्व कितना है इसका अंदाज़ा इसी बात से लगा सकते है कि छत्तीसगढ़ में विवेकानंद आश्रम की आधारशिला रखने वाले संस्कृत के प्रकांड ज्ञानी आत्मानंद जी के नाम पर सरकारी अंग्रेजी शाला खुल रहे है और दूसरी तरफ शहर, गाँव के हिंदी भाषी शालाओं में वे लोग ही पढ़ रहे है जो आर्थिक रूप से कमजोर है।
हिंदुस्तान में केंद्र और राज्यो के बीच संपर्क की भाषा हिंदी नही अंग्रेजी है। उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय में निर्णय की भाषा अंग्रेजी है ऐसे में देश का एक राज्य हिंदी भाषा मे चिकित्सा सेवा की स्नातक पाठ्यक्रम के लिए हिंदी भाषा का चयन कर श्रीगणेश कर रहा है तो देशवासियों को खुले मन से अभिनंदन करना चाहिए
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