साधारण सतीश से असाधारण सतीश कौशिक

लेखक - संजय दुबे

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जीवन है तो मरण भी है। अनिश्चित जीवन का निश्चित अंत, आने के बाद जाने का कोई वक़्त तय नहीं है। यही अनिश्चितता जीवन को बेफिक्र बनाती है। जीवन मृत्यु के बीच के सफर में न जाने कितने अरब लोगो मे से रोज यहां से चले जाते है हमे वो लोग ही ज्ञात होते है जिन्हें हम जानते है। परिवार के सदस्य, मित्र, सहकर्मी से बड़ी दुनियां नहीं होती है। एक औऱ वर्ग होता है जो हमे नही जानता है लेकिन हम इन्हें जानते है। ये पब्लिक फिगर कहलाते है। वही लोग पब्लिक फिगर बनते है जो जीवन मे चुनोतियों को स्वीकार करते है। असफलता, उन्हें ऊर्जा देती है और संघर्ष उनके साथी होते है। ऐसे ही सख्सियत थे -सतीश कौशिक। 


 होली के रंग से सरोबार हुए और दूसरे ही दिन अपनो को शोक से सरोबार कर चले गए। 
सतीश कौशिक  महज एक नाम नहीं था बल्कि मिश्रीत व्यक्तित्व था। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय(NSD) औऱ  फिल्म एंड टेलीविजन संस्थान पुणे का विद्यार्थी था। जाहिर है नायकत्व का जुनून भी था।  आमतौर पर फिल्म लाइन में स्टार्स संस् को छोड़कर बाहरी दुनियां के लिए 10 साल  का संघर्ष काल सामान्य माना जाता है। सतीश कौशिक भी इसी दायरे में आये।शेखर कपूर के सहायक बने, लेखक बने, निर्देशक बने निर्माता बने और कमोबेश हास्य कलाकार भी। "जाने भी दो यारो" भारतीय फिल्म इतिहास की एक हस्ताक्षर फिल्म है जिसमे हालात की हकीकत बताई गई थी। ये फिल्म सतीश कौशिक ने लिखा था। "मिस्टर इंडिया" फिल्म के निर्माता रहे। "रूप की रानी चोरों के राजा" सहित 10 फिल्मों में निर्देशन किया। हास्य भूमिका उनके व्यक्तित्व को जंची सो बहुत से फिल्मों में वे दिखे भी। अनिल कपूर और अनुपम खेर के करीबी दोस्त रहे तो ये तिकड़ी फिल्मों में भी दिखती रही। उन्हें दुख का साथी कहा जाता था। एम घटना जो हमे भी सीखा सकती है कि मित्रता कैसे निभाना चाहिए। नीना गुप्ता उनकी अच्छी मित्र है।  विवियन रिचर्ड्स से उनके विवाह पूर्व संबंध ने एक बेटी को जन्म  हुआ है। अविवाहित महिला का विवाह पूर्व गर्भवती होने का मतलब कुंती होना है। सामाजिक अपयश , समानांतर चलने की गारंटी। ऐसी स्थिति में सतीश कौशिक ने  नीना गुप्ता को सामाजिक सुरक्षा के लिए अपना नाम देने का प्रस्ताव रखा था। अपने परिवार और समाज से वे कितना अपयश झेलते? बावजूद इसके  उन्होंने मित्रता  की जिम्मेदारी को  समझा। ऐसे लोग मन के भले होते है।


 आम लोग उन्हें पप्पू पेजर या कैलेंडर की भूमिका तक सीमित करते है लेकिन सतीश कौशिक कही ऊपर दर्जे के व्यक्तित्व थे। उनका जाना खल गया।


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