नव चैतन्य, नव चेतना

लेखक - संजय दुबे

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अंग्रेजियत की लगभग सात पीढ़ियों की गुलामी के चलते हम पर परभाषा, परसंस्कृति का ऐसा कुप्रभाव पड़ा कि हम अपनी संस्कृति के प्रति लापरवाह होते चले गए। देश राजनैतिक रूप से स्वतंत्र तो हुआ लेकिन सांस्कृतिक गुलामी की से निजात नही पा सके। मानसिक रूप से हमारी किसी भी भाषा ने अंग्रेजियत से छुटकारा दिलाने में सफलता नही पा सकी। हम अपनी राष्ट्रभाषा, राष्ट्र संस्कृति नही बना सके।

हमारे रहन सहन, हमारे बोलचाल में नकल की आदत ऐसी हो गयी कि अंग्रेजी बोलना लिखना सभ्यता का मापदंड बन गया। हिंदी में बात करने के चलन को सभ्य न होना माने जाने लगा। धोती कुर्ते से पेंट शर्ट पर आना विकास नही बल्कि नकल थी। हम भले ही इसे कदमताल कहे लेकिन हमने चीन, जर्मनी, या द अफ्रीका से स्व अभिमान नही सीखा। हमे , हमारी संस्कृति को नदी बता कर अन्य नदियों को समाहित करना बताया गया लेकिन ये नही बताया गया कि नदी में गंदगी भी बहती है उसका शुद्धिकरण कैसे होगा।

 हमारी संस्कृति में जनवरी दिसम्बर के माह नहीं है , हमारा नया साल जनवरी में नही आता है। हमारा कलेण्डर ग्रिगेरियन कलेण्डर से पुराना है जब मुश्लिम और अंग्रेज इस देश में नही आये थे। ग्रिगेरियन कलेंडर 1582 में आया है। हम शक संवत वाले संस्कृति के वाहक है। शक संवत 78 वी शताब्दी का कलेण्डर है जो हमारा राष्ट्रीय कलेण्डर है।

दरअसल अंग्रेजो के गुलाम बन हम अपनी अस्मिता को खाद पानी दे ही नही पाए बल्कि विदेश फर्टिलाइजर ने ऐसा विष डाला है कि अंग्रेजी के कैंसर से हम सब बाधित हो गए है। रही सही कसर शिक्षा माध्यम ने पूरी कर दी।कान्वेंट संस्कृति ने पूरे रूप से हमारी संस्कृति को खोखला कर दिया। हिंदी केवल गाँव के स्कूलों की भाषा बन कर रह गई है वो भी हिंदी भाषी क्षेत्रो में। इन स्कूलों में भी अंग्रेजियत का ऐसा भूत चढ़ाया गया कि यूनिफॉर्म में टाई जोड़ दी गयी। ये मानसिक गुलामी का बंधन है जो गले मे लटकाया गया है।

आज से हमारा नया वर्ष शुरू होता है। आज मैं अधिवक्ता ब्रजेश पांडेय जी को याद करना चाह रहा हूं। उनसे मुझे ये सीखने को मिला कि अपनी संस्कृति का सम्मान कैसे किया जाए। इसी साल की पहली जनवरी को मैंने उन्हें फोन कर अंग्रेजी नव वर्ष की शुभकामनाएं दी तो उन्होंने विनम्रता के साथ ये कहा कि उनका हिन्दू वर्ष चैत्र माह में आरंभ होता है। मैं निःशब्द हो गया था, उस दिन, लेकिन आज सबसे पहले फोन करके ब्रजेश भैया का अभिनंदन किया। ये विचार हिंदी, हिन्दू, हिंदुस्तान की परिकल्पना का नव वर्ष है। हमे अपनी संस्कृति पर अभिमान करने का धर्म निभाना आना चाहिए। पर संस्कृति का अपमान भी हमारा धर्म नही है लेकिन नकल की आदत स्व के अभिमान को नेस्तनाबूद कर देती है।

आप सभी को चैत्र नवरात्र की शुभकामनाएं


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