नया संसद भवन औऱ नया नजरिया
लेखक : संजय दुबे
लोकतंत्र में ही जब पक्ष और विपक्ष की लोकतांत्रिक व्यवस्था है तो हर बात में समर्थन और विरोध होना स्वाभाविक है। पक्ष इस बात से बेफिक्र रहता है कि विपक्ष की बात सुनने का मतलब वक़्त जाया करना है।विपक्ष को लगता है कि पक्ष का समर्थन कर दिए तो सार्थकता खत्म हो जाएगी। इन्ही मुद्दों के बीच 28 मई 2023( संयोग है या सुनियोजित योजना है कि इसी दिन वीर सावरकर के जन्म का भी दिन है) को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नए संसद भवन का उद्घाटन करने जा रहे है। देश के 19 दलों जिसमे अधिकतम संख्या 52 है।आठ दलों के पास दहाई संख्या के सदस्य है।15 दल के केवल 1 सदस्य है। इनके द्वारा उद्घाटन समारोह का बहिष्कार किया जा रहा है। कारण है प्रधानमंत्री द्वारा उद्घाटन। कुछ लोगो की राय है कि उद्घाटन राष्ट्रपति के द्वारा किया जाना चाहिए था। एक जनहित याचिका भी लगाई गई लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने लताड़ लगाते हुए ये बता दिया कि याचिका का मकसद उस फूफा के समान है जो शादी में विघ्न चाहता है।
राजनैतिक दलों की अगर सुव्यवस्थित औऱ स्थिर सिद्धान्त हो तो जनमत भी बात को समझता है। केंद्र और राज्य में दलों की सरकारों में ही एक बात के दो दो मापदंड होते है। पक्ष करे तो गलत, खुद करे तो सही। ऐसे कुतर्को से स्वस्थ राजनीति होते दिखती नही है। दिन ब दिन लोकतंत्र कराहते ही दिख रहा है।
राजनीति से परे अगर दूर की कौड़ी देखने की क्षमता राजनैतिक दलों के थिंक टैंक के पास है तो थोड़ा ऊपर उठ कर सोचना जरूरी है। पुराने संसद के लोकसभा भवन में कुल जमा 552 सदस्यो की क्षमता है। पुराना संसद भवन 1927 में बना था इसकी क्षमता अगले 50 वर्ष बाद कि आबादी के प्रतिनिधित्व को ध्यान में रख कर बनाया गया था। जिसकी क्षमता 500 सीट थी। 1952 में 489 ,1957 में 494, 1967 में 523 औऱ 1977 में 542 करते करते अब 552 अधिकतम है।
1952 में पहले लोकसभा चुनाव में 10 लाख की जनसंख्या में एक सांसद बनाये जाने का उल्लेख संविधान में है।
नए संसद भवन में 888 संसद सदस्यों के बैठने की व्यवस्था है। ये पंक्ति फिर से पढ़िए नए संसद भवन में 888 संसद सदस्यो के बैठने की व्यवस्था है। इस संख्या को देश के 90 करोड़ मतदाताओं की संख्या को ध्यान में रख कर किया गया है। जिसमे बड़े जनसंख्या वाले लोकसभा से लेकर छोटे जनसंख्या वाले लोकसभा सीट शामिल है। 1950 में संसदीय सीट के लिए 10 लाख जनसंख्या को अगर 20 लाख कर दिया जाए तो 700 सीट होने की संभावना है। 2029 का लोकसभा चुनाव में ये परिवर्तन निश्चित रूप से होगा। संसदीय सीटों का जनसंख्या के आधार पर परिसीमन तय मान कर चलिए। जाहिर सी बात है कि मलकानगिरी (आंध्र प्रदेश)29 लाख मतदाता, इसके बाद गाजियाबाद,उत्तर बेंगलुरु,उन्नाव, औऱ उत्तर पश्चिम दिल्ली लोकसभा सीट पर 20 लाख से अधिक मतदाता है। 15 से 20 लाख के बीच कम से कम 95 लोकसभा सीट है जो परिसीमन मांग रही है।
नए संसद भवन को केवल 1200 करोड़ रुपये की लागत से गुजरात के HCP design का 2 साल 132 दिन में बनने के रिकार्ड को मत देखिए। न ही तुलनात्मक रूप से 6 वर्ष में 83 लाख रु खर्च कर एडविन लुटियन के ड्राइंग पर माथापच्ची करिये। सोंच औऱ समझ से आंकलन करिये। नया संसद भवन उद्घाटन से पहले ही बहुत कुछ इशारा कर रहा है।
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