सनम बेवफा

लेखक - संजय दुबे

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समाज मे पुरुषो की बेवफाई शायद स्वीकार्य है क्योंकि उसकी फितरत बूढ़े बंदर के समान होती है जो कुलांटी मारना नही भूलता। अर्थ साधन के लिए सदियों से पुरुष ही शारीरिक श्रम करते आया है अर्थ साध्य होने के नाते उसका आर्थिक पुरुषार्थ बढ़ते गया। अर्थ कमाने के लिए पलायन ने उसे घुमन्तु बनाया 

 पुरुष, के शारीरिक संबंध की आवश्यकता महिलाओं की तुलना में ज्यादा सार्वजनिक होती है। ये उसके पुरुषार्थ की अलग कहानी है। मर्द औऱ मर्दानगी की कहानी तभी पूर्ण होती है जब पुरुष अपने दम्भ की परिपूर्ति करता है। बलात्कार जैसा शारीरिक अपराध इसी पुरुषार्थ की दम्भी देन है। इसके चलते पुरुष के चरित्र पर कही गयी बात का खंडन नही होता है।

 विवाह जैसी सामाजिक संस्था ने इसी कारण जन्म लिया ताकि सामाजिक अपराध न हो औऱ वफ़ा बनी रहे लेकिन "सनम बेवफा" के किस्से सुर्खियों में होते है। 

हाल ही में ज्योति मौर्य , डिप्टी कलेक्टर को लेकर अलग प्रकार की बात सामने आई। जैसा कि खबरों में बाते सामने आ रही है( इसकी पुष्टि लेखक नहीं करता) उसमें विवाह के पश्चात पति के द्वारा प्रयास कर ज्योति मौर्य को सरकारी सेवा में क्लास 2 रैंक के अफसर बनाने की दास्तां है।2 बच्चों की माँ है ज्योति मौर्य, उनके किसी अन्य पुरुष से संपर्क के भी किस्से है। जिस पुरुष से उनका संपर्क है उनकी भी अलग दास्तां है।

 पुरुषो के बेवफा होने के लाखों किस्से है लेकिन सामाजिक रूप से स्त्री के बेवफा होने के किस्से कम होते है और होते है तो सुर्खिया भी बटोरते है। कोई स्त्री क्यो बेवफा होती है? इसका कारण देखे तो पहला कारण स्त्री को अपनी संपत्ति बता कर उस पर अनैतिक हक जताना औऱ शोषण करना होता है। स्त्री देह से परे पुरुष से प्रेम की भी महत्वाकांक्षा रखती है। केवल धन देकर घर चलाना ही पुरुषार्थ नही होता है। एक स्त्री को घर चलाने, सम्हालने के अलावा सामाजिक ताने बाने में कैसे अपने औऱ अपने संतान को सुरक्षित रखना होता है , ये स्त्रियां ही समझ पाती है। जब ऐसी स्थितियों से जूझते जूझते थक जाती है तो जहां मानसिक संबल मिलता है वहां झुक जाती है। इस स्थिति में परिवार भी बोझ लगने लगता है। ऐसी घटनाएं विरले ही होती है। स्त्री को बहुत सोचना समझना पड़ता है क्योंकि अकेली उसकी जिंदगी नही होती है। खुद के अलावा दूसरे घर के साथ साथ खुद की भी इज्जत पर प्रश्नचिन्ह लगता है। इससे भी आगे अगर दूसरा प्रेम सफल भी रह गया तो होने वाली संतानों के लिए भी कठनाई होती है।

 ज्योति मौर्य के मामले में क्या सच है क्या झूठ ये केवल तीन किरदारों के द्वारा बताये दिखाए जा रहे तथ्यों से पुष्ट करना कठिन है।

एक बात जो आज के दौर में आंशिक रूप से सही भी है कि आर्थिक स्वालम्बन ने एक तरफ स्त्रियों को आत्मविश्वास से लबरेज किया है। वे अब पुरुषो के भरोसे या उन पर निर्भर न होकर अपनी जिंदगी को अपने तरीके से जीने की लालसा रखती है। पहले पुरुष पर निर्भरता स्त्री को बेबस बना देता था।अब का दौर कुछ और ही है।इसके चलते विवाह जैसी संस्था कमजोर पड़ रही है। पाश्चात्य संस्कृति ने विवाह के समकक्ष लिव इन रिलेशन जैसे अघोषित पति पत्नी के रिश्ते को भी सामने किया है लेकिन ये बीमारी फिलहाल महानगरीय संस्कृति का हिस्सा है। नगरों तक इक्का दुक्का इसका असर है । सच तो ये है कि आर्थिक रूप से सक्षम व्यक्ति चाहे वह पुरुष हो या स्त्री, आज़ादी से सोचता है, विचरता है, निर्णय लेता है। सही है या गलत ये उसकी सोच नही होती है।


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