शाकाहार,शुद्धता औऱ सुधा मूर्ति
लेखक- संजय दुबे
खानपान हर व्यक्ति के जिंदगी के रोजमर्रा का मुद्दा है। दुनियां में दो प्रकार के खानपान है एक शाकाहारी औऱ दूसरा मांसाहारी। दोनो ही प्रकार के खानपान के लोग दुनियां भर में है। देखा जाए तो शाकाहार भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा रही है। जितने प्रकार का शाकाहार भारत मे उपलब्ध है उतना दुनियां के किसी कोने में नहीं है।
शाकाहार के साथ शुद्धता भी अनिवार्य तत्व है। शुद्ध शाकाहारी भोजन करने वालो के लिए परेशानी तब होती है जब वे देश दुनियां के ऐसे हिस्से में जाते है जहां शुद्ध शाकाहारी भोजन करने के लिए टू इन वन होटल ही उपलब्ध रहते हो। ऐसे में भारतीय लोग विकल्प तलाश लिए है और खुद के लिए ऐसी व्यवस्था करके जाते है जिससे मजबूरी के हालात में व्यवस्था की जा सके।
सुधा मूर्ति, देश की ऐसी महिला है जो अच्छे कार्यो के लिए जानी जाती है। शाकाहार औऱ शुद्धता के मामले में उन्होंने बताया कि वे देश दुनियां की यात्रा करती है तो घर से रोटी, पोहा, सूजी लेकर चलती है।साथ मे आवश्यक बर्तन भी होते है। अपना भोजन स्वयं बना लेती है लेकिन ऐसे होटलों को विकल्प के रूप में नहीं चुनती ।अपने साथ चम्मच भी रखती है ताकि शुद्धता रहे और किसी भी तरह सेवमांसाहार से पाला न पड़े।
सुधा मूर्ति के शाकाहारी होने और शुद्धता को लेकर पक्ष विपक्ष में बहुत सी बातें होने लगी। उनकी शुद्धता के मामले को लेकर जातिगत प्रश्न उठाये गए।
किसी भी व्यक्ति के अपने परिवेश में रहने, अपनी संस्कृति का पालन करने और अपनी व्यवस्था में रहने, जीने खाने का व्यक्तिगत अधिकार है।इस पर किसी अन्य व्यक्ति को अतिक्रमण करने का अधिकार नहीं है। शाकाहार के विपक्ष में बोलने वालों ने अंडे को शाकाहारी दूध को मांसाहारी बता कर अपना पक्ष रखा है लेकिन ये कमजोर मानसिकता के लोग है जो सुविधा अनुसार अपना काम निकालने का रास्ता खोजते है।
हिन्दू धर्म मे शाकाहार की अनिवार्यता रही है विशेष के हिन्दू औऱ वैश्य के लिए तो वर्जना है लेकिन समय के साथ वर्जनाएं टूटी है। धर्म भृष्ट्र करने वाले विदेशी आक्रमणकारियों ने यहां की संस्कृति को तबाह करने में औऱ यहां के नकलचियों ने अपनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है जिसके चलते यहां के संस्कृति को अनेकता में एकता का गलत स्वरूप दिया गया है।
कोई भी संस्कृति अपना मूल स्वरूप नही छोड़ती है।छोड़ना भी नही चाहिए लेकिन नकल के नाम पर खुद को भृष्ट्र कर लेना कहाँ तक उचित है।
जो मांसाहारी है उनके मांसाहार होने पर कोई आपत्ति नही है तो शाकाहार पर आपत्ति नहीं होना चाहिए। सुधा मूर्ति ने अपना पक्ष रखा है किसी का विरोध नही किया है अतः उनका विरोध करने वाले कमजोर मानसिकता से ग्रस्त है ये भी माना जाना चाहिए
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