इंजीनियर्स डे के बहाने

लेखक- संजय दुबे

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करोड़ो इंजीनियर्स में एक इंजीनियर ही ऐसा क्यो बना जिसकी जन्मतिथि ही करोड़ो लोगो के लिए प्रेरणा बन गयी।इस बात को मोक्षगुंडम जी के बारे में सोचे तो एक घटना याद आती है। मोक्षगुंडम एक बार ट्रेन में सफर कर रहे थे।अचानक उन्होंने जंजीर खींच दी। लोगो ने कारण पूछा तो मोक्षगुंडम ने बताया कि आगे पटरी टूटी हुई है। पता लगाने पर बात सही निकली। ऐसे व्यक्ति का जन्मदिन आज इंजीनियर्स डे के रूप में मनाया जा रहा है।

 बात सत्तर के दशक की है।अपने विद्द्यार्थी जीवन मे आठवीं तक तो भविष्य में क्या बनना है, ये बहुत कम लोगो को पता हुआ करता था उनके अभिभावकों को भी ये पता नहीं होता था कि उनके बच्चे का भविष्य कैसा होगा, या वो बड़ा होकर क्या करेगा? ये जरूर था कि आठवीं उत्तीर्ण करने के बाद गणित, भौतिकी औऱ रसायन शास्त्र लेने वाले अन्य छात्रों की तुलना में होशियार माने जाते थे। इनमें से ही आगे जाकर जो छात्र अत्यंत मेधावी होते वे इंजीनियरिंग कॉलेज के छात्र बन जाते।1947 में देश मे ऐसी संस्थान थी जो ऐसी शिक्षा के लिए उपलब्ध थी। देश भर से ढाई हजार छात्रों का ग्यारहवीं में 60 फीसदी अधिक अंक लाने पर प्रवेश मिलता। थाम्पसन कालेज ऑफ इंजीनियरिंग( आज का आईआईटी रुड़की) पहला तकनीकी कालेज था जो गंगा केनाल बनने के कारण 1868 में अस्तित्व आया था। इसके पहले आगरा में बड़े पैमाने पर आए अकाल के चलते लाखो लोगो की मौत ने सिंचाई के प्रति ईस्ट इंडिया कम्पनी को सोच दिया।ये वो भी समय था जब कलकत्ता से दिल्ली को जोड़ने वाली ग्रेंड ट्रंक रोड भी निर्माणधीन थी। ये देश के तकनीकी शिक्षा का आधार बना।

  मोक्षमुंडम विश्वैश्वरैया( नाम टाइप करने में हालत खराब हो गयी, अब समझ मे आया नाम लेने में क्यो कठनाई होती है) के जन्म का यही इतिहास रहा होगा। उन्होंने बीए करने के बाद पुणे के कॉलेज ऑफ साइंस से सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया। तब के मैसूर राज्य में बाढ़ की विभीषिका से बचाने के लिए कृष्णा राजसागर बांध उनकी ऐसी साकार योजना थी जिसके चलते एमवी( ये उनका संक्षिप्त नाम है) देश भर में पहचान बन गए। राजसागर बांध, वर्षाकाल में पानी को सुरक्षित रखने के साथ साथ सिंचाई के लिए भी बेहतर उपयोग करना था। कावेरी, हेमावती औऱ लक्ष्मण तीर्थ नदी के पानी को राज्य के लिए उपयोग की योजना ने एमवी को पहला स्वदेशी इंजीनियर बनाया। उनके अनुकरणीय कार्य ने उन्हें भारत रत्न बना दिया। वे अनोखी सोंच के साथ नए तकनीक के पैरवीकार भी रहे। उनके जन्मदिन 15 सितम्बर को 1968 से इंजीनियर्स डे या अभियंता दिवस के रूप में मनाये जाने का चलन है।

 आज, एक बात पर औऱ भी चर्चा होनी चाहिए कि तकनीकी शिक्षा का गौरव कैसा हो?

एक समय था 60 फीसदी से अधिक अंक PCM में लाने पर इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रवेश मिलता था। बाद में प्रवेश परीक्षा शुरू हो गयी। शिक्षा का बाजारीकरण हुआ तो कुकुरमुत्ते के समान इंजीनियरिंग कॉलेज खुल गए। जिनमे खुद की प्रयोगशाला भी नहीं है। पढ़ाने वालो का भगवान मालिक है। तकनीकी विश्वविद्यालय के कर्ता धर्ता किसी भी तरह 28 नंबर दिलाकर आगे बढ़ाने के पक्षधर है। लाखो सीट में एन केन प्रकारेण सामान्य छात्र भी इंजीनियर बनने चला जा रहा है। इस तकनीकी शिक्षा का इतना अवमूल्यन हुआ कि बी. ई औऱ बी.ए की डिग्री में फर्क नहीं रह गया है। केवल पीईटी में बैठकर प्रवेश पाने का अभिनव प्रयोग इसी देश मे संभव है। ऐसे लोग अगर आपके घर आकर ऑनलाइन सामान दे तो आश्चर्य मत करिएगा। ये उसका नही सरकार का दोष है।

 जो लोग लब्धप्रतिष्ठित आईआईटी, एनआईटी से निकले वे आज देश मे संघ लोक सेवा आयोग के माध्यम से आईएएस, आईपीएस,आईएफएस सहित एलाइड सर्विस में धूम मचाये हुए है। इनमें एक गर्वीला पक्ष ये भी है कि महिलाएं भी तकनीकी शिक्षा में तेज गति से अग्रसर है। एम.वी ये देख कर बहुत खुश होते होंगे


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