जय जवान-जय किसान के प्रवर्तक लाल बहादुर शास्त्री
लेखक : संजय दुबे
देश के एक ऐसे महान शख्शियत का जन्मदिन है जिसकी मृत्यु उसी के देश के स्वार्थी तत्वों के कारण आज भी संदेहास्पद है। ये व्यक्ति चालाक घाघ राजनीतिज्ञ नहीं था।साधारण व्यक्ति थे लेकिन दृढ़ता कूट कूट भरी हुई थी। इस महान व्यक्तित्व का नाम लाल बहादुर शास्त्री है।
ताशकंद समझौते में पाकिस्तान को यह कहना कि भले ही वे समझौते पर हस्ताक्षर कर रहे है लेकिन पाकिस्तान की जीती हुई भूमि दूसरा प्रधानमंत्री वापस करेगा। वे उन व्यक्तियों में शामिल नहीं हुए जो अपने देश की जमीन पर एक देश सृजित करवा दिए।
एक प्रधानमंत्री जिसे दो साल से भी कम समय मिले और इतने कम समय मे देश को युद्ध और अकाल की विभीषिका से जूझना पड़े ऐसे समय मे लाल बहादुर शास्त्री ने जो पहल किया वह आज भी याद किया जाता है। पाकिस्तान ने अचानक ही आक्रमण कर दिया। तीनो सेना के प्रमुखों ने प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री से सलाह मांगी तो उन्होंने देश की रक्षा के लिए आदेश दिया। देश को अकाल की विभीषिका से जूझना पड़ा तो उन्होंने दिन में एक समय खाना खाने और एक समय उपवास रखने का आव्हान किया। उन्होंने कृषि सलाहकार स्वामीनाथन को मेक्सिको भेज कर कृषि वैज्ञानिक बोरलॉग से संपर्क कर उत्पादन बढ़ाने के लिए भेजा। देश की हरित क्रांति का बीज लाल बहादुर शास्त्री ने किया था। उनके कारण ही देश जो खाली कटोरा कहलाता था वह गेंहू का कटोरा कहलाने लगा। सेना और कृषि को बढ़ाने के लिए जय जवान जय किसान का नारा भी उपरोक्त दो घटनाओं के कारण उन्होंने दिया था।
बहुत कम लोगो को जानकारी होगी कि फिल्म कलाकार मनोज कुमार को कृषि पर आधारित फिल्म उपकार औऱ भगतसिंह पर बनी फिल्म शहीद का प्रस्ताव लाल बहादुर शास्त्री ने ही दिया था।
अगर वे दीर्घ अवधि तक देश के प्रधानमंत्री रहते तो देश उस समय ही विकास के पथ पर बढ़ जाता लेकिन संदेहास्पद ढंग से ताशकंद में उनकी मृत्यु हो गयी। जिसका आजतक सच सामने नहीं आया है।
आज देश के महान सपूत को याद करने का दिन है। देश के 140 करोड़ नागरिक छोटे कद के ऊंचे व्यक्तित्व को श्रद्धा सुमन अर्पित करेंगे
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